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२१ बारस बेलौ कीध, स्वामजी
समभावै। हाट स्हामली थकी, पकी हाटे आवै। हाटे आवै जी तनु नै तावै, वर पक्का मुनि-जन गुण गावै।
धिन-धिन भीक्खू स्वाम, पको अणसण ठावै।। २२ तांम लियो विश्रांम, अरज ऋषिराय' करै।
पुद्गल पड़िया हीण, स्वाम सुण हरष धरै। हरष धरै जी इम वच उचरै, बौलावौ शिष्य भारीमाल सिरै।
धिन-धिन भीक्खू स्वाम, तास कुण होड करै।। २३ चट दे ऊभा आंण सुणी
भारीमालं। वले खेतसी आदि, मुनि आया चालं। आया चालं जी ऋष गुणमालं, वच वदै स्वाम अति सुविसालं। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, 'पीत सिव-पटसालं'। २४ करिवौ मुझ संथार, एम पभणै स्वामी।
नमोथुणं गुणतांम, सिद्ध अरिहंत नामी। अरिहंत नामी जी सिवपद कामी, ऊंचै स्वर वच स्थिर चित धामी॥ धिन-धिन भीक्खू स्वाम, परम संपति पामी।। २५ जावजीव लग मोय, त्याग त्रिहुं आहार तणां।
श्रावक-श्राविका संत, सुण जन-वृन्द घणां। जन-वृन्द घणा जी गुण करत जणा, अणसण धारयौ भीक्खू सुगुणा। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, काज सारै अपणा॥
(यतनी) २६ शिष्य भारीमाल कहै सार, क्यूं नी राख्यौ अमल आगार। ___ स्वामी कहै धारयौ संथार, किसी करणी देही नी सार।।
(धन धन भिक्खू स्वाम) २७ तेरस नै जनवृन्द, दर्श करिवा आवै।
संस आंखड़ी करै, स्वाम नां गुण गावै। गुण गावै जी अति हुलसावै, बाजार माहै जन नहिं मावै। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, विमल भावन भावै॥
३. त्याग।
१. मुनि रायचंदजी (ऋषिराय)। २. मोक्ष रूप पृष्ठशाला से प्रीति।
लघु भिक्खु जश रसायण : ढा.५
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