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________________ १४ अतीचार आलोय, सुमति अरु गुप्ति मझै। दोष लागौ हुवै कोय, महाव्रत पंच रजै। पंच रजै जी अघ थीज लजै, इम निसल थई गुणथीज गजै। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, सखर-सिव पंथ सझै।। १५ आयु निकट पिछाण, निसल आतम कीधी। हिवै संलेखण आण, सुणौ भवियण सीधी। भवियण सीधी जी तप असि लीधी, उपवास पंचमी तप वृद्धी। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, सुमती नी समऋद्धी।। १६ छट्ठ पारणे धार, अल्प औषधि आहारं। वमन हुवौ तिणवार, साम भीक्खू सारं। भीक्खू सारं तिण दिन धारं, पचखांण करै त्रिणविध आहारं। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, हीयै अति हुसियारं।। १७ सातम आठम जाण, अल्प अन्न _आचरीयौ। तुरत कीया पचखांण, कहै सतजुगि दरियौ। सतजुगि दरियौजी गुण रस भरियौ, इम तुरत त्याग किम उच्चरियौ? धिन-धिन भीक्खू स्वाम, जगत जश विस्तरियौ।। १८ नवमी त्याग करंत, खेतसी खांच' कही। अल्प आहार मुज हस्त, तणो लीजैज सही। लीजैज सही जी इम है अही, तसु वचन मान अन्न अल्प लही। (सुविनीत तणौ मन राखण ही) धिन-धिन भीक्ख स्वाम, कीर्ति जग छाय रही।। १९ दशमी त्याग करंत, अरज बड़ शिष्य न्हाळी। दस मोठ आसरै हस्त, लीयै चावळ चाळी। चावळ चाळी जी अघ नै टाळी, उपरंत त्याग कीधा भाळी। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, लगी सिव सूं 'ताळी' २० ग्यारस 'अमल आगार', कियौ इम उपवासं। हिव मुज आहार म जाण, वयण इम. परकासं। परकासं जी जन विश्वासं, अणसण थी अति चित हुल्लासं। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, अमल सिवपद आसं। १. आग्रह 'पूर्वक ३. इकतारी। २. चालीसा ४. अफीम। २३८ भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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