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७ भारीमाल नी आण, अखंडत जेह धरे। .. ते. सुविनीत पिछांण, संत सुगणांज सिरे।
सुगणांज सिरै जी कुण होड़ कर, सेव करौ तन-मन सखरै।
धिन-धिन भीक्खू स्वाम, अमल सिख्या उचरै।। ८. एह नी लोपै आंण, दूर करिवू जब ही।
ते अपछंदा जाण, तीर्थ मैं तेह नहीं। तेह नहीं जी जिन-समय कही, निंदण जोगां ते छै अति ही। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, सीख आपै सुरही। आणंद अभिग्रह कीध, वीर आणा बारे। वंदन नेमज लीध, प्रथम बोलण वारै। बोलण वारै जी इम मन धारै, चिंहु आहार दान तसु परिहारै।
धिन-धिन भीक्खू स्वाम, जिनंद ज्यूं इण आरै। १० अज्जा-संत विसेख, राखजौ हेत. अती।
दिख्या दीजो देख- देख परभव अरथी। परभव-अरथी जी सम्यक् धुर थी, पिण जिण-तिण नैं मूंडोज मती।
धिन-धिन भीखू स्वाम, तास सिर अधिक रती। ११ आलोवण अधिकाय, करी अति स्वाम भली।
लख चोरासी खमाय, करै आतम निसली। आतम निसली जी खामैज वली, गण थी टळनैज थया विकळी। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, तास चित कुसम कळी।। १२ बड़ा . शीष अवलोय, परम-भक्ता
वारु। लैहर आई हुवै कोय, खमावै चित चारु। चित चारु जी निज हितकारू, मुनि-अज्जा अन्य वलि गुणधारु। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, निजातम
निस्तारु॥ १३ जे श्रावक-श्राविका तेह, खमावै तास भणी।
वलि जती ढूंढीया जेह, जूजूआ नाम गिणी। नाम गिणी चरचाज घणी, तसु लैहर आई हुवै द्वेष तणी। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, निसल आतम अपणी।।
३. निशल्या
१. सुन्दर। २. दीप्ति (तेज)।
लघु भिक्खु जश रसायण : ढा.५
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