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________________ ढाळ : ५ (धन-धन भिक्खू स्वाम दीपाई दान दया) श्रावण मास मझार, दस्त कारण तन मैं। दिशां जावै पुर बार, गिणत नहीं बहु मन मैं। बहु मन मैं जी फुन बहु जन मैं, पुर माहि गोचरी प्रगटपण। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, भाव आराम घण। २ श्रावण पूनम स्वाम, गोचरी आप गया। भाद्रव मैं अभिराम, अधिक चित शांति भया। चिंतशांति भया जी वर ध्यान लह्या, ऋषि लीन परम भावेज रह्या। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, मरण पंडित उमझा। ३ त्रिहुं टक हुवै वखाण, पजूषण माहि भला। चउथ चांदणी जाण, वयण भाखै विमला। भाखै विमला जी अति ही अमला, वच संत खेतसी नै निमला। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, 'यमल गुण उभय झिला''। ४ थे सखरा शिष्य सुविनीत, चरण नो स्हाज दियौ। टोकरजी वर रीत, भक्ति करि . सुजश लियौ। सुजश लियौ जी तनु-मन ठीयौ, भारीमाल परम भक्ता वरीयौ। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, ज्ञान-गुण नौ दरीयौ। ५ यां तीना रा स्हाज, थकी समभाव पड़ें। पाळ्यौ संजम पाज२, हरख आनंद घड़ें। आनन्द घणे जी त्रिहुं संत तणे, अतहि इकधार रह्या सुमणै। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, सुजश तसु जगत थुणै? ६ सुणतां तीरथ तीन, सीख आपै सखरी। रहिज्यौ थे लहलीन, गणी सिर आण धरी। 'आण धरी जी मुझ नी जबरी, भारीमाल तणी तिम धार खरी। धिन-धिन भीक्खू स्वाम, अमल वाणी उचरी। १. ज्ञान और चारित्र गुण के युगल (जोड़ा) २. प्रण। को धारण करने वाले। ३. करता है। २३६ भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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