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________________ ज्यां धर्म-ध्यान घणो तप-जाप नो। राज करै हो दौलतसिंह राठौर, __ कुम्पावत कहियै करडी छाप नो। ५३/९-१०" पर, मुख्यतः इसका उच्छवास अध्यात्म-वासित है। आचार्य भिक्षु के जीवन के पौर-पौर में अध्यात्म-रस आप्लावित था। उनकी साधना का यात्रा-पथ जैन आगमों के दिव्य प्रकाश से आलोकित था। यद्यपि जैन-मुनि की चर्या अत्यंत कठोर है। सामान्य आदमी उस ओर मुंह ही नहीं कर सकता, पर आचार्य भिक्षु ने ऐसा रसमय जीवन जीया था कि उसमें आम आदमी को भी आकर्षण अनुभव होता है। उन्होंने अपने मधुरिम-व्यवहार से मुनित्व को भी मृदु-मुखर बना दिया। जयाचार्य ने बिलकुल सही लिखा है-- "भिक्खु जस रस अमृत भारी, शिव सम्पति सुख सहचारी।" (६/१) भिक्खु दृष्टांतः अनुभव निर्झर . भिक्खु दृष्टांत उसका सबल साक्ष्य है। यह अनुभव का ऐसा सरित्-प्रवाह है जिसे पढ़ते-पढ़ते पाठक को लगता है जैसे साधना के सितार पर मौन का संगीत गाया जा रहा है। नपी-तुली निर्वद्य भाषा में उन्होंने इतने पैने और करारे व्यंग्य-वाण चलाये हैं कि सामान्य समझ का आदमी भी सिर हिलाए बिना नहीं रह सकता। आचार्य भिक्षु के उन अनुभव प्रसंगों को संकलित कर जयाचार्य ने अध्यात्म-साहित्य में आल्हाद की एक नई कलम लगाई है। भिक्खु दृष्टांत के सारे प्रसंग मुनिश्री हेमराजजी की स्मृति के अद्भुत चमत्कार हैं। इनसे आचार्य भिक्षु की सम्पूर्ण जीवन शैली पर नया प्रकाश पड़ता है। मुनिश्री हेमराजजी अनुभवों के उस विशाल सरोवर से केवल घट भर स्मृति जल उलीच सके हैं। यदि आचार्य भिक्षु के जीवन के अन्य अगणित जीवन-प्रसंगों को भी संकलित किया जा सकता तो सरस्वती के भंडार की वह अपूर्व निधि होती। अनुवाद कौशल जयाचार्य ने भिक्खु दृष्टांतों को भिक्खु जश रसायण में संजोकर चरित काव्यों की परम्परा में एक नया बोध-बीज बोया है। इससे पहले ऐसा प्रयोग हुआ या नहीं यह एक अन्वेषण का विषय है। भिक्खु दृष्टांत की शब्द-संयोजना, साहित्यिक-शिल्प, अनुभव-प्रौढ़ता, अध्यात्मानुबंधता तथा उक्ति-वैचित्र्य आदि विशेषताएं एक स्वतंत्र पुस्तक-लेखन का विषय है। पर यह कह देना अनुचित नहीं होगा कि भिक्खु दृष्टांत का इस चरित काव्य में जैसा उपयोग हुआ है वह जयाचार्य के कवित्व का एक स्वर्णिम पृष्ठ है। (soxvii)
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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