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दूहा
कल्याण॥
१ भीक्खू भारीमालजी, आदि संत सुविचार।
नवो चरण लेवा भणी, ततखिण होय गया त्यार॥ २ समत् अठार सतरोत्तरे, पंचांग लेखे पिछांण।
आषाढ़ सुदि पूनम दिने, वारु चरण ३ अरिहंत नी लेई आगन्यां, शहर केलवा माय। संजम धारयौ स्वामजी, सिद्ध शाखे सुखदाय॥
ढाळ : ४ . (सुण चिरताली थारा लीजै चरित संभाली) १ थिरपालजी फतैचन्दो, दोनूं बाप-बेटा सुखकंदो। जैमलजी रा टोळा रा जाणी, भिक्षु साथ चरण गुणखाणी।
सुण सुखकारी,भिक्षु प्रतिबोध्या बहु नर-नारी।
सुण सुखकारी, भिक्षु थया ओजागर भारी॥ २ आचार्य भिक्षु ऋषिरायो, वले टोकरजी सुखदायो। ____ हरनाथजी ज्ञान गंभीरा, हद भारीमाल गुण हीरा॥ सुण. ३ संत तेरा मैं ताह्यौ, रह्या दृढ़ चित्त छहुं मुनिरायो।
शेष सात नीसरिया, ते पिण बादल जिम बीखरीया।। सुण. ४ भिक्खू दान-दया दीपावै, बहु नर-नारी समजावै।
व्रत-अव्रत लेखौ बतावै, हळुकर्मी सुण हरसावै॥ सुण. ५ मुरधर देश मझारो, स्वामी आछौ करै उपगारो।
आया देश मेवाड़ो, बहु प्रतिबोध्या नर-नारो॥ सुण. ६ सरधा नै आचारो, व्रत-अव्रत ऊपर विचारो।
वली अणुकंपा नी सुरंगी, स्वामी जोड़ करी अति चंगी॥ सुण. ७ धुर गुणठाणा नी करणी, निरवद आज्ञा मैं उचरणी।
जिन आज्ञा ऊपर जाणी, स्वामी जोड़ां करी सुखदाणी॥ सुण. ८ च्यार निखेपा नी जाची, पोतियाबंध ऊपर आछी।
काळवादी ऊपर सीधी, सूत्र साख देइ जोड़ां कीधी॥ सुण.
लघु भिक्खु जश रसायण : ढा. ४
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