SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 277
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८६ हां रे सुगपजन! जग विसतारियो तामो र २, तेरापंथी नामो रा २॥ जश. ८७ हा रे सुगज्जन! ताम भिक्खू इम केहवै २, समचित वेवै रा २॥ जश. ८ हां रे सुगणजन! हे प्रभुजी म्है तेरा रा २, अवर अनेरा रा २॥ जश. ८९ हा रे सुगपजन! सुमत गुप्त अठ संचो र २, पाळे व्रत पंचो रा २॥ जश. ९० ा रे सुगपजन! ए तैरै पाऊँ चित संती र २, सो ही तेरापंथी' रा २॥ जश. ९१ हां रे सुगपजन! ढाळ तीजी ए धीय २, जय-जश कीधी रा २॥ जश. भीक्खू कृत छप्पय १. गुण विण भेष कू मूल न मांनत, पुन्य पाप कू भिन-भिन जानत, आवता कर्मा नै संवर रोकत, बंध तो जीव कू बंधिया राखत, इसी घट प्रकाश किया, निर्मळ ज्ञान उद्योत किया, जीव-अजीव का किया निवेरा। आसव कर्मा कू लेत उरेरा। निर्जरा कमां कू देत विखेरा। सासता सुख तौ मोख में डेरा। भव जीव का मेट्या मिथ्यात अंधेरा। ऐ तो है पंथ प्रभु तेरा ही तेरा। २ तीन सौ तेसठ पाखंड जगत मैं, श्री जिन धर्म सूं सर्व अनेरा। : द्रव्यलिंगी केई साध कहावत, त्यां पिण पकड्या त्यांराइज केड़ा। ताहि कू दूर तजै ते संत, विधि सूं उपदेश दिया रूड़ेरा। जिन आगम जोय प्रमाण किया जब पाखंड पंथ मैं पड़िया बिखेरा। व्रत अव्रत दान दया वतावत, सावज निरवद करत निवेरा। श्री जिन आगन्या माहै धर्म बतावत, ऐ तो है पंथ प्रभु तेरा ही तेरा।। २३० भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy