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९ पर्यायवादी पिछाणौ, वले इन्द्रियवादी जाणौ।
वले एकल नै ओळखायौ, बहु जोड़ां करी मुनिरायौ। सुण. १० वले टोकम डोसी कहिवाई, तिण री श्रद्धा नै ओळखाई।
नव-तत्त्व नी जोड़ सुरंगी, चारु सूत्र साख दे चंगी। सुण. ११ वले विनीत नै अविनीतो, तिण ऊपर जोड़ पवित्तो।
टाळोकर नै ओळखायौ, 'वृध रास" माहे बहु न्यायो॥ सुण. १२ वले जोड्या सखर बखाणों, वारू वैराग-रस गुण-खांणों।
आसरै अड़तीस हजारो, स्वामी ग्रंथ' जोड्या सुखकारो॥ सुण. १३ सूत्रां नी हूंडी सीधी, वले पोत्याबंध ऊपर कीधी।
अवर ही बोल अनेको, वले मेल्या न्याय विशेखो। सुण. १४ उत्पतिया बुध सूं उदारी, स्वामी दृष्टांत दीधा भारी।
हळुकर्मी सुण हरषावै, चित चिमतकार अति पावै।। सुण. १५ वले संत-सती बहु कीधा, घणा श्रावक-श्राविका सीधा।
विचरया मुरधर नै मेवाड़ो, वले हाडोती देश ढूंढाड़ो। सुण. १६ चूरू ताई थली मैं आया, प्रयोजने
ऋषिराया। बहु विचस्या मरुधर मेवाड़ो, दोय चोमासा देश ढूंढाड़ो।। सुण. १७ ओजागर भिक्षु आपो, स्थिर च्यार तीर्थ मैं स्थापो। पूर्वधारी
जेहवा, ए तो स्वाम भीखणजी एहवा।। सुण. १८ दशविध जती-धर्म-धारी, ज्यांरी करणी री बलिहारी।
परभव चिंता पूरी, ज्यांरी कीर्ति जग मैं रूड़ी॥ सुण. १९ क्षमावंत गुणखांणो, स्वामी अधिक अवसर ना जांणो।
सिंह तणी पर सूरा, झट मेलै न्यायज रूड़ा॥ सुण. २० वलै वैराग रस माहै भीना, संवेग करी लहलीना। ____ नाम सुणी पाखंडी धड़कै, जन हळुकर्मी सुण हरखै॥ सुण. २१ सील सिरोमणी साचा, जशधारी भिक्षु जाचा।
दयावंत इन्द्रयां दमता, सतरे दत्त निकंचन रमता॥ सुण. २२ एहवा भिक्षु ऋषिरायो, त्यांरा गुण पूरा कह्या न जायो।
संक्षेप मात्र · बताया, गुण अनघ अथग अधिकाया।। सुण. १.अवनीत रास।
४. अचौर्य। २. ग्रन्थान।
५. अपरिग्रह। ६.निर्मल।
३. सत्य।
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भिक्खु जश रसायण