________________
दूहा
१ द्रव्य-गुरु सांभलीयौ तदा, लोक बहू ले लार।
आया छत्र्यां नै विषै, भिक्खू कनै तिवार॥ २ द्रव्य गुरु नै भिक्खू तिहां, बैठा छत्र्यां माय। माहोमा बातां करै, ते सुणजो चित ल्याय॥ .
ढाळ : ३ (हां रा मेवासी नान्ही सी नणदोळी रा) १ हां रे भिक्खू म्है दीधी तुज दिख्या रा २, धर मुज सिख्या रा २॥
. सुण वारु जी।। २ हारे भीखन!द्रव्य गुरु बोल्या ताह्यौ रा २, सुण मुज वायो रा २॥ सुण. ३ हारे भीखन! ओ दुखमपंचम आरोरा २, अधिक असारो रा २॥ सुण. ४ हारे भीखन! थारे दिढ़ संजम सूं पेमो रा २, निभेलो केमौ रा २॥ सुण.
(डाभ मुंजादिक नी डोरी) ५ तब भिक्खू बोल्या ताह्यौ, म्हे किम मानां तुज वायौ।
सूत्र वाचेनै कीधौ निरणौ, लेसां जिन-वचनां नो सरणौ।। ६ सूत्र रूप तीर्थ ए जाचौ, रैहसी छेहड़ा ताई साचौ।
सुध पाळसां संजम भार, करस्यां आतम तणो उद्धार।। ७ द्रव्य-गुरु सुण वचन उदार, तब तूटी आस तिवार।
मोह आयौ तिणवार, मन चिंता हुई अपार।। ८ उदैभाण' बोल्यौ तब एम- इम आंसूपच करौ केम?
बाजौ टोळा तणा धणी आप, राखौ थिर चित दृढ़ मन थाप।। ९ कहै-किण रो जावै एक, म्हारा जावै पांच विसेख।
औ तौ प्रत्यक्ष ही इह वार, गण माहै प. बघार ।। १० भिक्खू दृढ़ चित कियौ उदार, म्हैं घर छोड्यौ तिणवार।
मुज माता रोई अपार, तौ पिण न मान्यौ तिवार।। १. स्थानकवासी सामदासजी के टोले के २. अश्रुपात। साधु।
३. मोटे छिद्र।
लघु भिक्खु जश रसायण : ढा. ३
२२५