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३५ सेवग पुर मैं फिर गयो रे, बोल्यौ एहवी वाण।
जागां दीधी भीख भणी रे, तो संघ तणी छै आंण॥ सुगण. ३६ करली कुबुधिज केलवी रे, सेज्या' न मिल्यां सोय।
आफेई२ आसी उरहा रे, थानक मैं अवलोय॥ सुगण. ३७ पुर मैं जागां नां मिली रे, भिक्खू कीयो विहार।
बगड़ी बाहिर आवीया रे, वाउल वाजी तिवार।। सुगण. ३८ जैतसिंहजी री जिहां रे, छतरी अधिक उदार।
आवीनै बैठा तिहां रे, सुणीयो शहर मझार।। सुगण. ३९ दूजी ढाळ प्रगट पण रे, स्वाम तणी . सुखदाय।
वारूं वतका' सांभळ्या रे, 'जय-जश' हरष सवाय॥ सुगण.
१.स्थान
१.स्थाना २.स्वतः। ३. वापस।
४. तेज हवा (आंधी)। ५. बात।
. हवा (आंधी)।
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भिक्खु जश रसायण