________________
२१ सुण श्रावक हरख्या सही रे, आप तणी परतीत। __ जिसी हुंती ते तुरत ही रे, आप दिखाड़ी सुरीत॥ सुगण. २२ इम संवत अठार पनरोत्तरे रे, राजनगर मैं रंग।
सूत्र वांच निर्णय कियौ रे, सखरी रीत सुचंग॥ सुगण. २३ हिव चउमासौ ऊतस्यां रे, मरुधर देश मझार।
सोजत मैं आवी मिल्या रे, द्रव्य-गुरु सूं तिण वार।। सुगण. २४ द्रव्य-गुरु नै इह विध कहै रे, भूला मारग सार।
सुध-सरधा आई नहीं रे, असल नहीं आचार॥ सुगण. २५ सावज करणी पाप री रे, निरवद पुन री होय।
पिण एकण करणी मझै रे, पुन्य-पाप नहिं दोय॥ सुगण. २६ असंजती नै दान दै रे, जिन कह्यौ एकंत पाप। ___ 'शतक आठमें भगवती," स्थिर चित सेती थाप॥ सुगण. २७ असंजती रौ जीवणौ रे, वंछ्यां सावज जोग।
सावज अनुकंपा कही रे, देखो दे उपयोग। सुगण. २८ आधाकर्मी भोगवां रे, थानक नित-पिंड आहार।
मोल लीया वस्त्रादि जे रे, अहोनिश जड़ो कवाड़॥ सुगण. २९ इत्यादिक बहु वारता रे, दाखी विविध प्रकार।
द्रव्य-गुरु सुण मांनी नहीं रे, क्रोध चढ्या तिण वार॥ सुगण. ३० जद भिक्खू मन चिंतवै रे, करिवौ कवण प्रकार?
हिवड़ा न दीसै समझता रे, समजाविस धर प्यार॥ सुगण. ३१ दोय वर्स के आसरै रे, किया अनेक उपाय। __केतलायक नै समझायवा रे, द्रव्य-गुरु नै पिण ताय॥ सुगण. ३२ वले बगड़ी माहे आवीया रे, बोल्या भिक्खू वाय।
सुध सरधा आचार नै रे, धारौ आंण उछाह।। सुगण. ३३ तब द्रव्य-गुरु मांनी नहीं. रे, मन मैं कियौ विचार।
ए तो न दीसै समजता रे, हिवै करूं आतम नौं उद्धार। सुगण. ३४ इम मन पक्की धारनै रे, भिक्खू बुद्धि भंडार। ____ तड़के तोड़ी नीकळ्या रे, आया स्थानक रै बार॥ सुगण.
१. भगवती शतक ८ उ. ६सू. २४७।
लघु भिक्खु जश रसायण : ढा. २