________________
जाण।
८ बहु सिद्धांत वांची करी रे, जाण लियौ तिण वार।
थाप बहु दोषां तणी रे, पिण द्रव्य-गुरु सूं अति प्यार। सुगण. ९ पूछ्यां सुद्ध उत्तर नहीं रे, इह अवसर रै माय।
बात सुणी रुघनाथजी, कहै भीक्खू नै बोलाय।। सुगण. १० श्रावक राजनगर तणां रे, वंदणा छोड़ी ताहि।
थे जइ संका मेट दो रे, बुधिवंत विण मिटै नांहि॥ सुगण. ११ सुण भिक्खू आया तिहां रे, भारीमालजी
टोकरजी हरनाथजी, वलि साथे वीरभांण। सुगण. १२ श्रावक. कहै भिक्खू भणी रे, आधाकर्मी
आद। थाप दोष री थाहरै रे, म्हे किम सरधां साध? सुगण. १३ द्रव्य-गुरु रौ वच राखवा रे, निज बुद्धि करनै ताय। ___पगां लगाया तेहनैं रे, वलि श्रावक कहै वाय॥ सुगण. १४ संका तौ मुज नां मिटी रे, पिण थांरी परतीत।
तिण कारण वंदना करां रे, आप वैरागी वदीत॥ सुगण. १५ इह अवसर भिक्खू तणे रे, तनु मैं प्रगट्यौ ताप।
सीयो दुस्सह अति घणौ रे, तब मन चिंते आप। सुगण. १६ म्हे साचां नै झूठा किया रे, प्रत्यक्ष मोटौ पाप।
आउ आवै इण अवसरै रे, तौ कुण गति हुवै मिलाप? सुगण. १७ द्रव्य-गुरु काम आवै कदी रे, मिटीयां वेदन मोय।
सुध-मारग धारूं सही रे, कांण न राखू कोय॥ सुगण. १८ अभिग्रह एहवौ आदस्यौ रे, तुरत मिट्यौ तब ताव। ___ वार-वार सूत्र वांचीया रे, सखरौ जाण्यौ साव॥ सुगण. १९ सुध हाथे नाई श्रधा रे, असल नहीं आचार।
वर-जिन वचन विलोकतां रे, भूला ए भेषधार॥ सुगण. २० ताम श्रावकां नै तदा रे, बोल्या भीक्खू वाय।
थे साचा, सुद्ध थाप थी रे, म्हे झूठा छां ताय।। सुगण.
-
३. एकदम अच्छी तरह।
१. शीत लगकर आने वाला ज्वर। २. बुखार।
२२२
भिक्खु जश रसायण