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________________ १ हिव उत्पति भीक्खू तणी, संक्षेपे कहियै अछै, दूहा १ भिक्खू प्रगट्या अतिसय-धारी २ किण स्थानक मुनि जनमीया, सुध श्रद्धा आई किहां, ३ किम चरचा द्रव्य-गुरु थकी, किम बहुजन प्रतिबोधीया, च्यार ४ लिखत मर्यादा किम करी, संलेखणा किण विध संथारौ कीयौ, सहु धुर सांभळजो सहु द्रव्य-दिख्या किण ढाळ : २ (कीड़ी चाली सासरे रे ) भरत मैं रे, मणिधारी ओपता रे, जबर सुगण जन सांभळौ रे || २ दान-दयादिक श्रीजिन आज्ञा सिर धरी रे, ३ सावज्ज - निरवद सोधीया रे, भाग्यबली भिक्खू भला रे, ४ समत सतरै बयांसीयें' रे, सींह सुपने सुत जनमीयौ रे, ५ रमणी एक परण्यां तिहां रे, शील आदरयौ बिहुं जणां रे, ६ अनुमत माता ना दियै रे, द्रव्य गुरु कहै ए गूंजसी, ७ समत् अठारै आठै समै रे, दिख्या- मोहछब दीपता रे, १. विक्रम संवत् १७८३ । लघु भिक्खु जश रसायण : ढा. २ सूत्र थकी आहार ऊपरै रे, दिया सेती दीपायौ ऊंडी तोड्यौ किण तीर्थ संक्षेप दिशा वारू जश शहर आसाढ़ किम प्रभु अभिराम विविध बुद्धि अवलोय। कोय ॥ ठांम। पंथ ॥ विख्यात ॥ || ग्राम। गुणधाम ॥ अंत। कहंत॥ मुनिराय । अधिकाय । कंटाळ्ये सुध अधिकार || कितै दृष्टंत सुगण. उत्पात। सुगण. सार। सुगण. सुविचार | काळ दिख्या सुगण. सुपने सीह । री दिलधार । देख्यौ 'मृगपति जेम अबीह' ।। सुगण. द्रव्य - गुरु धार्या बगड़ी शहर विख्यात ।। सुगण. रुघनाथ । २. सिंह की तरह निर्भय । २२१
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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