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________________ ११ जो हुं रहुं भागला माय, इम दृढ़ चित ज्ञान विचार, १२ द्वेष सूं तौ तुरत डिगै नांय, द्रव्य - गुरु मोह आण्यौ ताय, १४ हां रे भीखन ! तू जासी कितीयक दूरो रा २, १५ हां रे भीखन ! आगै थारौ नै पूठौ म्हारो रा २, दूहा १. खिन्न। तौ आप मोह - राग थकी चल जाय। पिण कारी न लागी काय ॥ डिगीयो १३ वलि द्रव्य - गुरु मन चिंतवै, इम तौ वलि चलावा कारणे, बोल्या इह विध (हां रा मेवासी नान्ही ) २२६ परभव मैं दुख सैंठा (डाभ मुंजादिक नीं डोरी ) १६ जद भिक्खू बोल्या वाय, इम तौ डरायौ न डरूं कोय, कितौ १७ पछै छत्र्यां सूं कियौ विहार, चरचा कीधी है वरलू माय, १८ तब द्रव्य - गुरु बोल्या ताय, साधुपणौ पळै नहीं १९ तब भीक्खू कहै इम ढीला भागल कहेसी एम २० बल संघयणादिक हीण, पूरौ, वाय, न पळै आचार सुध भाव, नहीं उत्सर्ग नो २१ कह्यौ आगूंच अर्थ उदार, इम कहसी ते द्रव्य - गुरु हुवा कष्ट' अपार, सुध २२ द्रव्य - गुरु भीक्खू रै इहां संक्षेप मात्रज आखी, वलि ताहि, बहु रह्या हूं लोक लगासूं पूरो रा २॥ सुण. रहिसूं लारो रा २॥ सुण. हुआ ते पाय। तिणवार ॥ परिषह खमवा री मन नाय । (हां रा मेवासी नान्ही सी ) वाय॥ काळ जीवणौ रुघनाथजी सांभळजो चित्त ल्याय ॥ लार। सांभळ भीखन ! मुज वाय। ए दुषम काळ करूरो॥ कह्यौ सूत्र आचारांग माय। हिवड़ां न पळै चरण सुध नेम || दुषमकाळ महा क्षीण ॥ माय। मोय? प्रस्ताव ॥ भेषधार । तिवार॥ जाब न आयौ चरचा हुई माहो द्रव्य - गुरु इह विधि भाखी ॥ . माहि । भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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