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________________ नंदी विषे, कल्पसूत्र पिण नाम तसु, विषै कथा, ते धुर परिपाटी असुध में, द्रव्यै सुद्ध बहुश्रुत विषै, दूसगणी १५ पछै सुद्ध दिख्या एहवो न्याय जणाय छै, स्थिरावली १६ नंदी अंत नाम ए आखीयो, पाछै १७ कल्प सूत्र मैं पिण कह्यौ, दूसगणी थया हुवै ए वज्र जिम, ते पिण १८ तथा वज्र पिण बे थया, दूसगणी ते पिण जांणै केवली, निश्चय १९ कल्पसूत्र मैं इम कह्यौ, दूसगणी स्थिरगुप्त जे, वच्छसगोत्रज २० कुमार - धर्म पर्छ, पछै पछै नांम नहीं आखीया, कल्प २१ कल्प विषै शाखा घणी, आखी चरणधार केइ सुद्ध हुवै, ते पिण जांणै क्षमाश्रमण थया १३ वज्रस्वाम १४ नंदीसूत्र पनरैसै ग्रही, १ वीर निर्वाण थकी रह्यौ, प्रवर एक संहस्र वर्सा लगै, सतक संवत भसमग्रह उतरयां ३ धूमकेतु बैठो २१८ ढाळ : १ ( प्रभवो मन में चिंतवै ) तास स्थिति वर्स तीन सौ, सुध असुद्ध तदा, वर पछै, लूंको तदा, दश ४ भस्मग्रह स्थिति वे सहंस वर्स नीं, 'उदै - उदै' पूजा निग्रंथ नी, १. भगवती शतक २० उ. ८ सूत्र ७० । न परिपाटी परंपर अनुसारे चरण परिपाटी वदै ऊपर ऊतरीयां कल्पसूत्र २. उत्तरोत्तर । कह्यौ देवड्ढ़ी विषै पिण छै पूर्व जान। नांम। जांणै केवली ताम पिण दोय। कोय ॥ खबर न पट नो जणाय । पट्ट॥ सुवट्ट | अभिधान ॥ त्यां केवली पट्ट । नो वीमें इकतीसे प्रगट्यौ वर्ष पहला फुन वट्ट ॥ ताय। ताहि । पाहि ॥ नाम। ताम॥ माहि । ताहि ॥ ज्ञान । जान ॥ वास। तास॥ दीस। तेतीस ॥ ताय। वाय ॥ भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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