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आषा
५ वंकचूलिया मैं कह्यौ, प्रभु सिव थी संपेख।
बे सौ एकाणूं वर्सी लगै, विसुध परूपणा विसेख।। ६ ता पाछै उत्सूत्र नीं, परूपणा
अधिकाय। वर्स सोलसौ ऊपरै, निनांण लग ताय॥ ७ तिहां दुष्ट वाणिया मानसै, हिंसा धर्म दिढ़ाय। बहु जन भणी कुपंथ मैं, न्हाखेसी
इधकाय।। ८ बे सौ एकाणूं वर्स लगै, सुध परूपणा ख्यात।
सोलेसै निनाणूं वर्स ए, असुध अधिक अवदात॥ ९ ए उगणीसै नेऊ थयां, संघ सूत्र जे रास।
धेमकेतु तब बैसिस्यै, स्थिति तिण सय तेतीस वास॥ १० ए वर्स तेवीसो तेवीस जे, तठा पछै अधिकाय।
उदय संघ नैं सूत्र तणो, वंकचूलिया मैं वाय॥ ११ वर्स तेवीसोतेवीस ए, किसा वर्स लग थाय। ___ तेह तणौ निर्णय कहूं, सांभळजो 'चित । ल्याय।। १२ च्यार सौ सत्तर वर्स लगै, नंदीवर्द्धन नो सोय।
संवत बरत्यौ तठा पछै, वीर विक्रम नो जोय॥ १३ अठारै सय तेपनें थया, वर्स तेवीसो तेबीस ।
धूमकेतु जद ऊतस्यौ, संघ पूजा अति दीस। १४ द्वादश मुनि था तेपर्ने, स्वामभीक्खू रै सोय।
तब हेम हुआ मुनि तेरमा, पछै न घटीयौ कोय॥ १५ बे सौ एकाणूं वर्षां लगै, सुध परूपणा किम न्याय।
सहस्र वर्ष पूर्वधर रह्या, केइक' सुध देखाय। १६ विसंभोग सुहस्त थी, नसीत-चूरणे
न्हाळ। उत्सूत्र तास परंपरा, पूरवधर तिण काळ॥ १७ छ सौ नव वर्सी पछैन, दिगंबर ____इम पूर्वज्ञानी थकां, विरुद्ध परूपण सेख॥ १८ इम बे सौ एकांणु लगै, अति उत्सूत्र न थाय। ___ पाछै उत्सूत्र तणी, परूपणा
अधिकाय॥
मत
देख।
१. ते तौ (क)।
२. थयां पाछै (क)।
लघु भिक्खु जश रसायण : ढा. १
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