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दूहा
ताय॥
१ वीर-पाट सौधर्म वर, जंबू प्रभव उदार। भट्ट सिझंभव 'मनक-पिय', जसोभद्र
जयकार। २ जसोभद्र ना सीस बे, संभूतविजय
सुजाण। भद्रबाहु मुनिवर भला, सोळ स्वपन कृत छाण॥ ३ स्थूलभद्र दृढ़-चित रह्या, चउदश पूरव धार।
महागिरी सुहस्त फुन, 'गोत्र एलावच्छ सार। ४ सुद्ध परंपर महागिरी, नंदी नाम उदार। बहुल प्रमुख पट दूसगणी, अंत
नामअवधार।। ५ संप्रति नै समझावीयौ, शिथिल थया . सुहस्त।
कृतगढ़ अनेषणी प्रमुख, दोष विषै अभ्यस्त॥ ६ महागिरी समझावीयौ, तब बोल्या इम वाय।
काळ आगामिक नै विषै, धर्म प्रवर्त्तस्यै ७ दुर्भिख मैं मुनिवर भणी, जन देस्यै अनपाण। आहार-पाणी तब तोड़ियौ, नशीत-चूरणे
जाण॥ ८ सुहस्त पट सुस्थित हुआ, कोटिवार जे ताहि।
सूर मंत्र जपवा थकी, कोटिक गच्छ कहिवाहि॥ ९ सुहस्त परपाटी थई, तेह असुद्ध जणाय।
कल्पसूत्र मैं नाम तसु, वलि बहुश्रुत जाणै ताय।। १० आरंभी सुहस्त थी, सुस्थित
सुप्रतिबुद्धाद। अनुक्रम श्रेणज नीकळी, नंदीवृत्ति
संवाद।। ११ सुहस्त पाछा सुद्ध हुवा, सुध परिपाटी
ते पिण जाणै केवली, वंदे नंदी १२ 'प्रश्नोत्तर - रत्नमालिका', ग्रंथ कथा मैं
सुहस्ति दंड ले सुद्ध थया, एह मिलती दीसै बात।
आय।
माय॥
ख्यात।
बात।
१.मनक के पिता २. बे बंधव अधिकार (मू.)
३. नंदी थेरावलिया-गा. २५ से ४१ तक। ४. क्रीतकृत/अनाचार का भेद।
लघु भिक्खु जश रसायण : ढा. १
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