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७ एक चौमासौ सैहर आंबेट में, वरस पैंतीसै विचार।
सेंतीसै पादू सुखदाई, भीक्खू गुण-भंडार॥ भीक्खू. ८ सोजत सैहरे कीयौ स्वामजी, चारू एक चौमास। ___ वर उपगार तेपनै धर्म-वृद्धि, हेम-चरण तिण वास॥ भीक्खू. ९ श्रीजीदुवारे तीन चौमासा, तसुं धुर वरस तयाळ।
पवर पचासै छपनै पूरण, वर उपगार विशाल॥ भीक्खू. १० पुर मैं दोय चौमासा परगट, स्वाम किया सुविहांण।
सैंताळीसै वर्स सतावनैं, जुऔ छोड़ायौ जांण॥ भीक्खू. ११ सैहर खैरवै पांच चौमासा, छावीसै . बतीसै छांण।
वर्स इकताळे अरु छयाळे, वलि चौपने जांण॥ भीक्खू. । १२ सात चौमासा पाली सैहरे, तेवीसै तेतीसै थाट।
चाळीसे चमाळे बावने, पचावने गुणसाठ॥ भीक्खू. १३ सात चौमासा सरीयारी मैं, उगणीसे बावीसे सार।
गुणतीसे गुणाल बयाल एकावने, साठे कीयौ संथार॥ भीक्खू. १४ पनरै गांम चौमासा प्रगट, स्वाम किया श्रीकार।
'ज्ञान-दिवाकर" घण घट घाली, मेट्यो भरम अंधार॥ भीक्खू. १५ श्री वर्धमान तणो शासण, सखरो दीपायो स्वाम।
बहु जीवां नैं प्रतिबोधी नै, पोहता परभव ठांम॥ भीक्खू. १६ सुख कारण तारण भव सारण, विघन विडारण वीर।
नरक-निवारण जनम-सुधारण, सखरा स्वाम सधीर।। भीखू. १७ समता दमता खमता रमता, नमता जमता न्हाल।
तमता भ्रमता वमता तन-मन, गमता वचन विशाल॥ भीक्खू. १८ आप औजागर गुण-मणि आगर, सागर स्वाम सुजांन। __वयण-सुधा वागर धर्म-जागर, नागर नाथ निध्यान॥ भीक्खू. १९ भरम-विहंडन दुरमति खंडन, महि-मंडन
मुनिराज। कुमति-निकंदन मन आनंदन, पूज भवोदधि पाज।। भीक्खू. २० सुमति करण अघ-हरण स्वामजी, शिव-वधू वरण सनूर।
भवदधि तरण करण सुख संपति, चरण धरण चित सूर।। भीक्खू.
१.ज्ञान-सूर्य।
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भिक्खु जश रसायण