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८ बखांण कियौ विस्तार सूं हो, शिष सुविनीत श्रीकार। ___ भाग वली भीक्खू तणे हो, मिलियौ जोग उदार॥ स्वामी. ९ परिणांम चढता पूज रा हो, इण विध नीकली रात।
दिन तेरस हिव दीपतौ हो, परगटियौ परभात। स्वामी. १० गांम-गांम रा आवै घणा हो, दर्शण करवा देख।
जांणक मेळौ मंडीयौ हो, वारूहरख विसेख॥ ११ गुण स्वामी ना गावता हो, आवता अति जन-वंद। हिवड़े हरख हुलसावता हो, पावता
परमानंद।। १२ जसकरमी था जीवड़ा हो, जय-जश करता
परम पूज मुख पेखनै, तन मन होय प्रस्न ।। १३ धुर ही थी धर्म छांणनै हो, शुद्ध मग लीधौ सार।
अंत तांई उजवाळीयौ हो, जिन मारग जयकार। १४ धोरी' थे जिन-धर्म ना हो, इम बोलै नर-नार।
सूरपणे सखरौ कीयौ हो, स्वामी थे संथार॥ १५ ए साठमी गुण आगळी हो, रूड़ी ढाळ रसाल।
'जय-जश' करण स्वामी तणा हो, वारू गुण विशाल। .-.
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१.प्रसन्न।
२. अगुआ।
भिक्खु जश रसायण : ढा.६०
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