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दूहा
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१ केका अभिग्रह एहवौ कीयो, यां सुद्ध मत काढ्यौ सार।
(तो) छेहडै अणसण आवसी, पकौ ऊतरसी पार॥ २ इण विध अभिग्रह आदर्यो, भोळा लोकां तांम।
बात सुणी कहै पचखीयो, अणसण भीक्खू स्वाम॥ ३ धेषी था जिन-धर्म नां, चित पाम्या चिमत्कार।
जाण्यौ ए मारग खरौ, केइ वांदै वारूंवार॥ ४ अति नर-नारी आवता, गावता मुनि गुणग्रांम। बाजार माहि अमावता', सरावता धिन स्वांम।
ढाळ : ६०
(राम को सुजश घणो) १ स्वाम तणौ संथारौ सुणी हो, आवै लोक अनेक। कोड करीनै करै घणां हो, वारु वैराग विसेख॥
स्वामी नों सुजश घणौ॥ २ कोइ कहै-संथारो सीझै स्वाम नौ हो, त्या लग काचा पांणी रा त्याग।
कोइ कहै-त्याग कुशील रा हो; वर चित आंण वैराग॥ स्वामी. ३ केइ अग्नि आरंभ नहीं आदरै हो, केइ करै हरी नां पचखांणा
केकां रात्रि-भोजन तज्यौ हो, इत्यादिक वैराग वखांण। स्वामी. ४ केइ धर्म तणा द्वेषी हुंता हो, ते पिण अचर्य पांम्या तिण वार।
अनमी केइ आवी नम्या, स्वाम तणे संथार।। स्वामी, ५ पडिकमणौ कीधां पछै हो, स्वाम भीक्खू . सुविहांण।
भारीमाल आदि शिष भणी हो, · कहै वारु करौ वखांण।। स्वामी. ६ शिष सुविनीत कहै सही हो. संथारो आपरै . सोय।
बखांण नों स्यूं विशेष छै हो? तब पूज- बोल्या अवलोय। स्वामी. ७ किणहि आरजीयां अणसण कियौ हुवै हो, तौ करौ बखांण त्यां जाय।
मुझ अणसण माहै देशना हो, नहि करौ थे किण न्याय? स्वामी.
१. नहीं समाते।
२. साध्वियां।
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भिक्खु जश रसायण