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दूहा
१ पांणी पीधौ पूजजी, आफे' चित उजमाल।
पौहर दिवस जाझौ प्रगट, आयौ थौ तिण-काळ॥ २ साध बैठा सेवा करै, आंणी हरष
अपार। श्रावक-श्राविका स्वाम नौं, देख रह्या दीदार। ३ भीक्खू ऋष सुद्ध भाव सूं, ध्यावता । निरमल ध्यान।
'सकै तौ'२ जांणू स्वाम नैं, ऊपनौं अवधि सुज्ञान॥ ४ 'साध श्रावक होवै सही, वैमानिक
विख्यात। अवधि-ज्ञांन तसुं ऊपजै',' आगम वच आख्यात॥ ५ दिन चढ्यौ पौहर दौढ़ आसरे, सांभळता सहु कोय। वचन प्रकासै किणविधै, भल सुणियै भवि लोय॥
ढाळ : ६१ - (भवियण नमो अरिहंताणं) . १ साधू आवै साहमा जावौ, मुनी प्रकासै वाणं। वले साधवीयां आवै बारै, स्वामी बोलै वचन सुहाणं।
भवियण नमो गुरु गिरवाणं, नमो भीक्खू चतुर सुजांण।। .. २.. के तौ. कह्यौ अटकळ उनमांनै, कै कह्यौ बुद्धि प्रमाणं!
कै कोइ-अवधि ज्ञान ऊपनौं, ते जाणे सर्वनाणं॥ भवि. ३ केइ नर नारी मुख सूं इम भाखै, स्वामी रा जोग साधा मैं वसीया।
इतलै एक महुरत आसरै, साध आया दोय तिसीया।। भवि. ४ विकसत-विकसत साधू वांदै, चरण लगावै शीसं।
नर-नार्या जाण्यौ अवधि ऊपनौं, साचौ विसवावीसं॥ भवि. ५ स्वामी साधू आया जांणी, मस्तक दीधौ हाथं।
इतलै दोय महुरत आसरै, आयौ साधविया रौ साथ।। भवि. १. अपने-आप।
४. "हेमराजजी स्वामी रौ जोड्यौ भीक्खू २.संभवतः।
चारित तेहनी ढाळा १३ ३. जो साधु,श्रावक वैमानिक देवलोक में तिण मैं दशमी ढाळ तेहज राखी ते उत्पन्न होते हैं, उन्हें अन्तिम समय में लिखिये छ।' अवधिज्ञान उत्पन्न हो जाता है, ऐसा आगम जयाचार्य द्वारा लिखित टिप्पणी। में कहा है।
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भिक्खु जश रसायण