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दूहा
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भाव।
१ सीख सखर दै स्वामजी, हद वाणी हितकार।
स्वाम वचन सुणतां छतां, चित पामै चिमत्कार।। २ समता खमता सखर चित, दमता रमता देख।
नमता जमता निमल मुनि, वमता वंक विसेख। ३ भव-समुद्र तिरवा भणी, भीक्खू भलैज
वृद्धि भाव हद वीर रस, जांण तिरण रौ डाव।। ४ वर वायक वांणी विमल, दायक अभय दयाल। पद लायक भीक्खू प्रगट, नायक स्वाम
स्वाम निहाल।। __ढाळ : ५७
(धन धन जंबू स्वाम नैं) १ शिष भारीमाल सुहांमणा, परम भक्ता पहिछांन हो मुणिंद। पिंडत-मरण पेखी पूज रौ, बोले एहवी वांण हो मुणिंद।। धिन-धिन भीक्खू स्वाम जी धिन-धिन निरमल ध्यान हो, मुणिंद।।
धिन -धिन पवर सूरापणौ। धिन-धिन स्वाम नों ज्ञान हो मुणिंद।। २ सखर स्वांम नां संग थी, मन हुसियारी माय हो मुणिंद।
अबै विरही पड़े आपरौ, जांणै श्री जिन राय हो मुणिंद॥ धिन-धिन. ३ प्रभू-गोयम री पीतड़ी, चौथे आरै पिछांण हो मुणिंद।
प्रत्यख आरै पंचमैं, भीक्खू भारीमाल री जांण हो मुणिंद।। ४ तिण कारण भारीमालजी, आखी अल्प सी बात हो मुणिंद।
विरह तुम्हारौ दोहिलौ, जाणे श्री जगनाथ हो मुणिंद। धिन-धिन. ५ भीख वलता इम भणै, थे संजम पालसो सार हो मुणिंद।
निरतीचारे निरमळौ, होसौ देव उदार हो मुणिंद।। धिन. ६ महाविदेह खेतर मझै, मुझ थकी मोटा अणगार हो मुणिंद। __ अरिहंत गणधर आदि दे, देखजो तसुं दीदार हो मुणिंद।। धिन.
भिक्खु जश रसायण : ढा. ५७