________________
७ सतजुगी भाखै स्वाम नै, आप जाता दीसौ झंडमाहि' हो मुणिंद।
स्वाम कहै-सुण साधजी! चित मैं न झंड री चाहि हो मुणिंद। धिन. ८ सुख स्वर्गादिक ना सहु, पुद्गल रूप पिछांण हो मुणिंद। ___ 'पांमला सुख पोचा घणा', ज्यांनै जांणू जैहर समांण हो मुणिंद। धिन. ९ वार अनंती भोगव्या, अधिका सुख अहमिंद हो मुणिंद।
तौ पिण नहि हुऔ तिरपतौ, तिण कारण ए सुख फंद हो मुणिंद॥ धिन. १० तिण सूं म्हारै झंड तणी, वंछा नहीं लिगार हो मुणिंद।
मुझ मन एकंत मोक्ष मैं, सासता सुख श्रीकार हो मुणिंद॥ धिन. ११ वैरागी एहवा मुनिवरू, जांण्या पुद्गल जैहर हो मुणिंद।
स्वाम संबंध सुण्यां छतां, आवै संवेग नी लैहर हो मुणिंद। धिन. १२ सखर सतावनमीं सोभती, ढाळ रसाळ अपार हो मुणिंद।
समरण भीक्खू स्वाम नौं, 'जय-जश' करण श्रीकार हो मुणिंद।। धिन.
१. देवों के झुंड (समूह) में।
३. अहमिंद्र (नवग्रैवेयक एवं पंच अनुत्तर २.खुजली के सुख के समान अत्यंत तच्छ। विमान के देव)।
४. वैराग्य।
भिक्खु जश रसायण