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________________ दूहा पत नकारा वदै १ साध श्रावक नैं श्राविका, बहु सुणता तिण वार। - सीखावण दै स्वामजी, हद २ वीरजि - मोख विराजतां, वारू कियौ वखांण। सोलै पौहर रै आसरै, सीख दीधी सुविहांण। ३ इण दुखम आरा मझै, स्वाम भीखनजी सार। प्रत्यख श्री जिन नी परै, आखी सीख उदार॥ ४ सखर बुद्धि वांणी सखर, सखर कळा सुखकार। - नीत सखर चित निरमकै, वचन सुविचार।। ढाळ : ५५ (भावे भावना) १ जिम मुझ नैं जांणता, म्हारी परतीतो रे। राखजो, भारमलजी री रीतो रे॥ सीख स्वामी तणी॥ २ सहु संत-सत्यां रा, भारमलजी नाथो रे। आज्ञा आराधजो, मत लोपजो वातो रे॥ सीख. यांरी आंण लोपीनें, निकळे गण बारो रे, __ तसुं गिणजो . मती, चिऊं तीर्थ मझारो रे॥ । सीख. आंण आराधै, सदा रहै सुविनीतो रे। तसुं सेवा करौ, ए जिण मग रीतो रे॥ । सीख. ५. हैं पदवी आपी, भार लायक जांणी रे। भारमलजी . . भणी, सुद्ध प्रकृति सुहांणी रे॥ सीख. ६ नींत चरण पाळण री, भल ऋष भारीमालो रे। संक म राखजो, सुद्ध साधू नी चालो रे॥ सीख. ७ सुद्ध समण सेवजो, अणाचार्यां सूं दूरा रे। सीख __दोनूं ध-, हुवै मुक्ति हजूरा रे॥ सीख. यांरी १९० भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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