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८ अरिहंत गुरु आज्ञा, लोपै कर्म जोगो रे। ___अपछंदा' तिके, नहीं वंदण जोगो रे। सीख. ९ उसनारे नै पासथा, कुशीळ्या प्रमादी . रे। अपछंदा
इणां, जिण आंण विराधी रे॥ सीख. १० यांनै वीर निषेध्या, ज्ञाताई मैं विसालो रे।
संग करणौ नहीं, बांधी जिन पाळो रे॥ सीख. ११ आणंद लियौ अभिग्रहौ, जिण-गण थी न्यारूं रे।
तसुं वायूँ नहीं, पहिली वच न उचारूं रे॥ सीख. १२ अन्यमति ना देव गुरु, अथवा जमाली रे।
तास नमूं नहीं, नहीं वंदू न्हाळी रे॥ सीख. १३ वलि विगर बोलायां, बोलण रौ नेमो रे।
आहार . आपूं-.-..-नहीं, अभिग्रह लियौ एमो रे। सीख. १४ अभिग्रह जिन आगळ, आणंद ए लीधौ :- । -
सप्तम अंग" मैं, शुद्ध पाठ प्रसीधो रे॥ सीख. १५ रीत एहिज राखणी, चिहुं संघ नै चारू रे। टाळोकर
तणी, संग दूर निवारू रे॥ सीख. १६ ए रीत आराध्यां, पामौ भव पारो रे।
श्री जिन सीखड़ी, सरध्यां सुख सारो रे॥ सीख. १७ सहु साध-साधवी, वर हेत विशेषो रे। ____ रूड़ौ
राखजो, धरणौ नहीं द्वेषो रे॥. सीख. १८ वलि जिलौ न बांधणौ, गुरु आण सुगांमी. रे। ___सीख प्रथम सही, दी भीक्खू स्वामी रे॥ सीख. . १९ गुरु आज्ञा लोपी, बांधै जे जिलौ रे।
अति अविनीत ते, दीयौ कर्मी टिलौ रे।। सीख. २० एकल सूं ई खोटौ, इसड़ौ अविनीतो रे। तसुं
समजायनै, रखणी सुध रीतो रे॥ सीख. १. स्वच्छन्दा
५. प्रमाद असावधानी करने वाला साधु। २. निज धर्म पालन में आलसी साधु। ६. ज्ञाता श्रु. १ अ.,५ सूत्र १२५। ३. शिथिलाचारी साधु।
७. उपासकदसा, अ. १, सू. ४५। ४. कुत्सित/दूषित आचार वाला साधु।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ५५
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