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७ भारमलजी सूं भैळप भली, रहीज अति प्रीतो ए,
८ सखर तीनां रा साझ सूं, वर म्हैं पाळ्यौ
९ चित्त समाधि रही
हुसीयारी १० शिष सुविनीत हुवै
चित
चंदो
११ गुणग्राही
एहवा
दिल देखौ कीजै
१२ ऐसी
सुविसालो
ए, सतजुगी टोकरजी सारिखी क. मु.॥
१३ जोड़ी वीर गोयम जिसी, पवर स्वाम शिष पीतो ए। ए, चाल सखर 'चौथा तणीं' क. मु.॥ कह्यौ संबंधो मैं, सखरौ ए।
हदरीतो
चौपनमी ढाळ
ए, स्वाम भीक्खू नो सोभतौ क. मु.॥
१४ ए प्रबंधो
रूड़ी रीतो ए । जांणक पाछिलभव तणी क. मु.॥ संजम उजवाळ्यौ ए। ए, प्रत्यख ही सूरापण क. मु.॥ घणी, म्हारा मन मझारी ए ।
ए, यां तीनां रा साझ थी क. मु.॥ सही, तो गुर रै रहै आंणदो ए। ए, देव जिनेन्द्रे दाखीयौ क.मु.॥ पूज भीखनजी
गुणी,
पेखौ
ए।
ए, स्वाम गुणज्ञ सुहांमणा क. मु.॥ पीतड़ी, जैसी भीक्खू भारीमालो ए।
१. चौथे आरे की सी।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ५४
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