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दूहा
सावण मासे सामजी, पूनम , लगै पिछांण ।
सखर गोचरी सहर मैं, आप करी अगवांण॥ २ आवसग अर्थ अनोपम, लिख-लिखनै अवलोय।
शिष नैं आप सिखावता, जसधारी मुनी जोय॥ ३ सांवण सुद छेहडै सही, मुनी तणै तन माहि।
कांइक कारण उपनो, 'फेरा५ तणौज ताहि॥ ४ तो पिण ऊठै गोचरी, गांम माहि मुनीराय।
'दसा' बाहिर जावै सही, लांबी गिणत न काय॥ ५ ओषध लीयो अणायनै३, कारण मेटण काम। पिण कारण मिटियौ नहीं, पूज समा परिणाम॥
ढाळ : ५४ (कै तैं पूजी गोरज्या कै तैं इसर देवो ए) १ चरम किल्यांण चतुर सुणौ मास भाद्रवा माह्यौ ए। सुखदायो
ए, हुई वृद्धि अति धर्म नी क. भवियण ए॥ २ पज्जुसणां मैं परवाड़ा, वारू हुवै वखाणो ए॥ सुविहांणो
ए, सरस तीन टक देशना क. मुनिवर ए।। ३ सुंदर वांण सुहांमणी, निसुण बहु नर नारौ ए। सुखकारो
ए, चौथज आई चांदणी क. मु.।। पिंजर तन हीण्यौ पड्यौ 'परम पूज पहिछांण्यौ ए।
मन जांण्यो ए, आउ नेडौ उनमांन थी क. मु.॥ ५ स्वाम कहै सतजुगि भणी, थे सखर शिष सुविनीतो ए।
धर पीतो ए, साज दीयौ संजम तणो क. मु.॥ ६ टोकरजी तीखा हुंता, विनयवंत सुविचारी ए।
हितकारी ___ए, भक्ति करी भारी घणी क. मु.॥
१. दस्त। २. शौचार्थ। ३. मंगाकर।
४. व्याख्यान। ५. हीणौ (क)।
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भिक्खु जश रसायण