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चतुर्थ खण्ड
सोरठा १ समरूं गोयम स्वाम रे, सुधर्म जंबू आद मुनि।
वले भीक्खू गुरु नाम रे, चौथों खंड कहूं चूंप सूं॥ २ मुरधर देश मेवाड़ रे, हाड़ोती ढूंढाड मैं।
चावा देशज च्यार रे, समचित विचऱ्या स्वामजी।। ३ घेरुलालजी व्यास रे, श्रावक तेरां माहिलो।
ते कछ देशे गयो तास रे, टीकम नै समजावीयो।। ४ टीकम डोसी आम रे, देश कछ मैं दीपतो।
तेपनै गुणसठै ताम रे, पूज कनै आयो प्रगट।। ५ प्रगट तेह प्रजोग रे, कछ देशे धर्म बाधीयो।
सांम तणें संजोग रे, जीव हजारां उद्घऱ्या।। ६ चर्म किल्याण पिछांण रे, इण भव आश्री जाणज्यौ। सुणज्यो चतुर सुजांण रे, पूज भीक्खू नों प्रगट हिव।।
दूहा ७ पांचू इंद्रयां परवरी, न पड़ी : काई हीण।
वधपणे पिण पूज नी, सीघ्र चाल शुभ चीन।। ८ थांणैः कठैइ नां थप्या, उदमी इधक अपार।
चारु चरचा करण चित, पूज तणै अति प्यार।। ९ उठै गोचरी आप नित, अतिसैकारी पूज सुमुद्रा पेखतां, चित मैं पांमै
चैन। १० छेहला-छेहला गांम फरसता, छेहलाई करत विहार।
चांणोद सूं पीपाड़ लग, विचऱ्या स्वाम उदार।।
ऐन।
१. प्रसिद्ध। २. वृद्धपणे (क)। ३. स्थिरवास।
४. उद्यमी (क)। ५. अतिशयकारी (क)।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ५३
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