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५६ सुमतागर सासन स्वामी, जश धर मुझ अंतरजामी।
सखरौ कुण स्वामी सरखौ? पूज गुण ‘सुखम दृग' परखो हो लाल।। जिन. ५७ आसापूरण
आपौ, जपूं आप तणौ नित जापौ। पूरण मुझ आप सूं पीतं, निरमळ सुद्ध आपरी नीतं हो लाल।। जिन. ५८ कही एह बावनमी ढालं, वर 'जय-जश' करण विशालं। मोनैं भाग्य-प्रमाण मिलिया, मननाज मनोरथ फळीया।। जिन.
मुंह मांग्या पासा ढळीया हो लाल।। जिन. ५९ तीजो खंड कह्यौ तहतीकौ, निरमळ भीक्खु गण नीको।
सासण सुखदाय सधीकौ, 'जय-जश' वृद्धि शिव नौं टीको हो लाल।। जिन.
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कलश
१ मुनि सुगुण माळा वर विसाला, सुमति पाल सुजाणीयै।
तम कुगति ताला भर्म ज्वाला, परम दयालं पिछांणीयै।। सुख सद्म संत महंत सुंदर, भ्रांत भंजन अति भलौ। सुमति सागर अमल आगर, निमल मुनि गण गुणनिलौ।।
॥ इति भीक्खु जश रसायणे तृतीय : खंड ।।
१. सूक्ष्म दृष्टि।
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भिक्खु जश रसायण