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________________ दूहा १ समत अठार सतावनैं, जेठ मास मैं जोय। पिता पुत्र धर चरण-पद, हरष घणौ अति होय॥ ॥ २ 'ताराचंदजी' तात सुत, 'डूंगरसी' महामंड। पिता भार्या परहरी, सुतन सगाइ छंड। ३ वड वैरागी संत बिहुँ, सखरौ कर संथार। भीक्खू स्वाम पछै उभय, समचित सुधार॥ ४ अणसण इकताळीस दिन, ताराचंद उवेख। दश दिन अणसण दीपतौ, डूंगरसी देख॥ ५ तदनंतर संजम लीयौ, 'वरल्या-वौहरा' ____ 'जीवौ' मुनि तासोल नों, महा मोटो मुनिराय॥ ६ सरल भद्र प्रकृति सखर, तीन पाट नी तांम। सेव करी साचै मनै, धुन सुविनय मैं धाम॥ ७ भीक्खु भारीमाल पाछै भलौ, नेउए वर्स निहाल। गोधूंदे अणसण गुणी, महा मुनी गुणमाला ढाळ : ५० (चेत चतुर नर कहै तनै सतगुरु) १ 'जोगीदासजी' स्वाम जोरावर, तदनंतर त्रिया त्यागी। स्वाम भीखनजी संजम दीधौ, बालपणै बड वैरागी॥ __भरम छांड भीक्खु शिष्य भजलै, तज मिथ्या मति तालंदा। कर्म-जाळ काटौ करणी कर, परम ज्ञान परमानंदा ॥ध्रुवपद।। २ सैहर केलवा रा वासी सुद्ध, जोगीदास साचौ जोगी। सखर सोभागी ममता त्यागी, भल सुमती पिण नहीं भोगी॥ भरम. ३ अल्प काळ मै अचाणचक रौ, सैहर पीसांगण मैं सुणीयौ। चौविहार संथारौ चोखौ, थिर चित सूं मुनिवर थुणीयौ॥ भरम. गुणसठ वर्स मुनि गुणवंतौ, पूज छतां परभव पहुंतौ। आतम तायॊ जन्म सुधार्यो, हिय निर्मल ऋषराज हुतौ॥ भरम. REFEEEEEEEEEEEE ताय। १७० भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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