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________________ ५ तदनंतर 'जोधौ' मारू ते, गांम केरड़ा नों गुणीयौ। स्वाम भीक्खू स्व.हस्त संजम शुद्ध, भारी तपसी तप भणीयौ। भरम. ६ अढी मास तप आछ आगारै, तप उत्कृष्टपणै तपियौ। सरल भद्र मुनिवर सोभागी, जाप विविध तन मन जपियौ। भरम. ७ दिन अड़तीस कोचले दीप्यो, संथारौ सखरौ सुणीयौ। स्वाम पछै परभव सुमति सुध, जोधो धिन माता जणीयौ।। भरम. ८ सैहर खेरवा ना 'भगजी' सुध, वर आज्ञा दी बहिन बड़ी। संजम भीक्खू स्वाम समाप्यौ, सखर विनय थी सोभ चढी॥ भरम. ९ जाति वैद महता जशधारी, भगजी भक्ति करी भारी। भीक्खू भारीमाल ऋषराय तणी भल, पेखत ही मुद्रा प्यारी॥ भरम. १० ऋषराय तण वरतारै रूड़ौ, पंडित मरण मुनि पायौ। निनाणूंए आत्म नैं निंदी, सुद्ध परिणाम सोभायौ॥ भरम. सोरठा सारठा. ११ जोगड़ जाति सुजांण रे, वासी बीदासर तणौ। __पूज समीप पिछांण रे, 'भागचंद' आवी करी।। १२ वारु गुणसठै वास रे, चारित धार्यो चूंप सूं। वर्स कितेक विमास रे, कर्म-जोग थी नीकल्यौ। १३ चंद्रभांणजी माय रे, रह्यौ- पंच मास आसरै। भारीमाल पै आय रे, कहै मुझ नै ल्यौ गण मझै।। १४ हूं रह्यौ चंद्रभाण माय रे, त्यांनै साध न सरधीया। थे मोटा मुनिराय रे, साधु सरधतौ स्वाम गण।। १५ भारीमाल ऋषराय रे छेद दीयौ षट मास रौ। ___ लीयौ तास गण माय रे, अवलोकीभीक्खू लिखत॥ १६ आंपां माहिलौ जांण रे, जाय चंद्रभाणजी मझै। अल्पकाळ पहिछांण रे, आहार पाणी भेळौ करै।। १७ पिण आपां नैं साध रे, सरधै सुद्ध मन सूं सही। सरधै तास असाध रे, नवी दिख्या दैणी न तसुं। १. उदयपुर संभाग का एक गांव । भिक्खु जश रसायण : ढा. ५० १७१
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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