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११ संसारी लेखै मामा, सतजुगी महा मतिवंता। ___भल भाणेज रायचंद भणीयौ, जशधारी जैवंता। जै. १२ भीक्खु ऋष अति भाग्य बली, शिष्य मिलिया रायचंद नीका।
गिरवा गैहर गंभीर गुणागर, पूज प्रथम ही परिखा॥ जै. १३ बहु वर्सी लग मार्ग नी वृद्धि, जिणजी आणू जांणी।
भीक्खु रै अति भाग्यबली, ऋषराय मिल्या शिष आंणी॥ जै. १४ ऐसा भीक्खु आप ओजागर, शिष्य पिण मिल्या सरीखा।
तस पग छेहडै संत हुआ ते, सांभळीयै सुवृधिका॥ जै. १५ ए गुणपचासमी ढाळ अनुपम, मिल्यौ संत मन मान्यौ।
कहियै धर्म-वृधि नौं कारण, 'जय-जश' करण सुजाण्यो॥ जै.
भिक्खु जश रसायण : ढा. ४९
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