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रावळीया
गणपति नाली, थिर
ढाळ : ४९
जै जै जै गणपति नमूं रे नमूं १ समत अठारै वर्स सतावनैं, गांम रावळीया गुणीयै।
लघु वेस'ऋषराय"' दीख्या ली, थिर चित सेती थुणीयै। __ जै जै जै गणपति नमूं रे नमू, नमूं रे नमूं हूं तो घणी रे खमूं।
जय जय गणपति शिष नमूं रे नमूं ॥ध्रुवपद।। २ बंब जाति चतुरौ साह सुतवर, नाम रायचंद नीकौ।
वर्स इग्यार आसरै वय मैं, संजम सखर सधीकौ।। जै. ३ हथणी होदे हरख हूऔ अति, मात कुशालां वारु।
साथै संजम पूज समाप्यौ, चैत्री पूनम चारु॥ जै. ४ प्रबलबुद्धि गुण पुन्य पैखनै, परम पूज फुरमायौ।
पद लायक ए पुन्य पोरसौ, वचनामृत वरसायौ।। जै. ५ दिशावान ऋषराय दीपतौ, भाग्य बली बुद्धि भारी। ---- हस्तमुखी' मूर्ति हद हरखत, पेखत मुद्रा प्यारी॥ जै.
६ पाट तीजै आगूंच परुप्या, स्वाम . वचन सुखदाया। ___जंबू स्वाम जिसा जयवंता, जाझा _थाट . जमाया। जै. ७ अंत काल भीक्खू नैं अधिकौ, साहज सखर सुखदाया।
भारीमाल रै पास भुजागळ', रायचंद ऋषराया।। जै. ८ गुणंतरै वर्स भारीमाल नी, आज्ञा ले अगवांणी। ___ 'प्रथम सीस' ऋष जीत कियौ, निज पट लायक सुविहांणी।। जै. ९ भारीमाल नैं स्हाज दीयौ अति, 'अन्त सीम' अधिकायौ।
आप ओजागर अधिक अनोपम, दीन-दयाल दीपायौ। जै. १० तस उपगार तणौ वर्णन, करतां अति ग्रंथ वधीयौ।
भीक्खु तणौ संबंध इहा, तिण कारण संखेपीयौ। जै. १. हंसमुख।
पीछे तो भार संभालने वाले तुम हो ही, तुम्हें २.भुजा की तरह अगुआ/हर कार्य में अपने उत्तराधिकारी की आवश्यकता होगी, सहयोगी।
__ अतः तुम ही उसे दीक्षा दो। .. ३.सं. १८६९ माघ कृष्णा ७ के दिन जयपर उसी आदेश के अनुसार मुनि रायचदजी ने में जीतमलजी (जयाचार्य)को दीक्षा देने के जीतमलजी को अपने हाथ से दीक्षित किया। लिए आचार्यश्री भारीमालजी ने मनि 'ऋषि राय पंचढ़ाळियो' ढा. १/२२-२४। रायचंदजी को भेजा। उन्होंने कहा--मेरे ४. जीवन भर। अंत समय (क)।
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भिक्खु जश रसायण