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________________ दूहा भलौ, वर पवर, ‘उदैराम”” मझै, पूज सांवण मैं संजम लीयौ, अधिक ३ अति उमंग तप आदर्यौ, वर बयालीस ओळी लगै, चढ्योज ४ अवर तप कीधौ अधिक, छठ-छठ आठ सौ इकतालीस आसरै, आंबिल ५ साठ स्वाम पछै सही, सखरौ चेलावास चलतौ रह्यौ, भारीमाल सोरठा १ तदनंतर तपसी वास केलवा नौ २ पचावनैं पाली ६ तदनंतर तिण वार कर्म- जोग प्रकृति कठिण अपार रे, ७ ' ओटो 39 जाति सोनार रे, स्वाम कनैं समाचार रे, आय वासी ८ अति कायौ हुवौ बाप रे, तूं मुझ क्यूं दै ताप रे, ९ म्हांरी कानी सूं जांण रे, इक नर सुणतां कही वांण रे, १० प्रकृत त प्रताप रे, संजम कठिण परिषह ताप रे, छूटौ ११ 'नाथोजी " पोरवाल रे, वासी १२ जिभ्या लोळपी जांण रे, छूटौ तेह पिछांण १. राणावास के पास । सुत-गृह छांडी सार रे, संजम भिक्खु जश रसायण : ढा. ४९ रे, 'खुशालजी' आज्ञा कर जोगी स्वामी चपलोत मुनि रे, पिण तुझ २. हैरान । भीखनजी धर्म ते आंबल चढतै आदि कीया कर उतार्यौ कहै इण दी मुझ दाय संजम थी -खारचीयां जती विचार | अधिकार ॥ पास। उजास ॥ वृद्धमान। ध्यांन ॥ विचार | लीयौ। नकळ्यौ । है तब संजम उदार ॥ संथार पार ॥ आवै रीत सूं॥ इण परै । जिसौ ॥ ढूंढी यौ । दीयौ ॥ पाळणौ दोहिळौ । तब छिनक मैं॥ देसूरी तणौ। पै ।। --तणौ । - सरै स्वाम बांधी.... मर्याद श्रद्धा सनमुख - नैं। रह्यौ ॥ १६७
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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