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दूहा
१ तिण अवसर कोटा तणा, दोलतरांमज़ी
आया तसुं टोळा
थकी, संत
सोरठा
रे, वारू संपेख रे, स्वाम बहुमान रे, छूटौ
प्रकृति अजोग पिछांण रे, सुरतौ
२ दोय रूपचंद 29 देख 'सूरतौजी 31 ३ रूपचंद
दूहा
४ बड़ा संत विचरत- विचरत
वृद्धमांनजी, संजम
आवीया देश
५ लू रा कारण थी लीयौ, मारग समत अठार पचावनैं, लीधौ
७ पछै परिणाम कच्चा पड़या, हूं थांरै नहीं कांम कौ, ८ इम कहिनै अळगौ थयौ,
काळ
इक चेलौ कीधा पछै आयौ ९ शिष तज कहै ग्रहस्थां भणी - तंत भीक्खू नैं वहिरावजो, मुझ १० इम कही साधुपणौ पचख, दीयौ पांच दिवस नैं
आसरै, परभव
६ लघु 'रूपचंद " " स्वाम गण,
माधोपुर
अणसण रौ बंधौ कीयो, वैणीरांमजी
१. पहोंतौ (क)।
१६४
बोल्यौ
रत्न
च्यार
ऋष
गणे
तेह
पिण
वर्द्धमांन जी।
संजम लीयौ॥
सरल
ढूंढार
मैं
प्रयोग थी।
थयौ ॥
छूटक
संजम
रै
एहवी
कांकरौ
कितौ इम
इन्द्रगढ
देख।
सुविसेख ॥
सूत्र मुझ
गुरु भीक्खू
संथा
पहूतौ
सुधार।
मझार ॥
संथार
सार ॥
माहि ।
पाहि ॥
वाय।
थाय ॥
थाय ।
माय॥
तांम।
स्वांम ॥
ठाय ।
जाय ॥
भिक्खु जश रसायण