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सोरठा
११ जती भेष नैं जांण रे, 'मायारामजी' मूंकीयो।
प्रत्यक्ष ही पहिछांन रे, भेषधा- मैं आवीयो॥ १२ भेषधार्यां नैं छंड रे, संजम लीधौ स्वाम पै।
बहु वर्स चरण सुमंड रे, निकळ काळवादी थयौ। १३ 'विगतौ- नाम'विचार रे, वासी बोरावड़ तणौ।
संजम ले सुखकार रे कर्म प्रभावे नीकळयौ।।
ढाळ : ४८ (बाजोट पर नहीं बेसणौ मुनि पग ऊपर पग मेल) १ तदनंतर 'टुंगच'२ ना वासी, 'सुखजी' नाम श्रीकार। ___ स्वाम भीक्खू पै संजम लीधौ, आंणी हरख अपार रा। भीक्खू स्वाम ओजागर! आप रा सुविनीत भला शिष्य, जिण मारग जमायौ रे।
__सुगुणा परम पूज रै प्रसंग, सुज्ञांनी जय-जश छायौ रे ॥ध्रुवपद।। २ स्वाम भीक्खू पछै चोस?, कांइ सैहर देवगढ सार।
अणसण कर आत्म उजवाळी, तो शुद्ध दश दिन संथार ग॥ भीक्खू. ३ वर्स तेपनै सरीयारी वासी, 'हेम आछा' हद जात।
संजम स्वाम समाप्यो सुवर्णन हेम-नवरसे विख्यात रा॥ भीक्खू. .४ उत्पत्तिया बुद्धि आगला, स्वामी हेम-सखर सुविनीत।
प्रबल-बुधि पुन्य-पोरसा, कांइ पूर्ण पूज सूं पीत ॥ भीक्खू. ५ परम विनयवंत परखीया, वारू बुधि भारी सुविचार।
हद कीयौ सिंघाड़ौ हेम नौं, भारी ज्ञानी गुणां रा भंडार ग॥ भीक्खू. ६ हेम सुनिमळ हीया तणा, अरु हेम स्वामी हितकार। ___हेम सुमति ना सागरू, अरु हेम गुप्ति गुणकार रा॥ भीक्खू. ७ हेम दिशावान दीपतौ, मुनि हेम मोटौ महाभाग।
हेम ओजागर ओपतौ, वर हेम हीयै वैराग रा॥ भीक्खू.
१.बगतोजी नाम से भी इनका उल्लेख मिलता २. 'मोखंदा' के पास (मेवाड़) में है।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ४८
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