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२ पवर चरण भीक्खू पास पायौ रे, संजम बहु वर्से सोभायोरे।
मुनि जिन शासण दीपायौ, भीक्खू शिष्य सोभता नित्यवंदौ रे। ३ सैहर नैणवै कीयौ संथारौ रे, पाम्यौ भव सायर नों पारौ रे।
औ तौ भीक्खू तणौ उपगारौ।। भीक्खू. ४ तदनंतर वर्स चोमालो रे, 'वैणीरांमजी28 अधिक विसालो रे।
निकळंक चरण चित्त न्हालो॥ भीक्खू. ५ दीख्या भीखनजी स्वामी दीधी रे, वसवान वगड़ी रा प्रसीधी रे।
मुनि गण माहै सोभा लीधी।। भीक्खू. ६ हुवौ वैणीरांम ऋष नीको रे, प्रबल पिंडत चरचावादी तीखौ रे।
मुनि लीयौ सुजश नौं टीकौ।। भीक्खू. ७ वारु वाचत सखर वखाणौ रे, सखर हेतु दृष्टांत सुजाणो रे।
भरत मैं प्रगट्यौ जिम भांणो॥ भीक्खू. ८ हद देसना मैं हुसीयारौ रे, श्रोता नै लागै अधिक सुप्यारो रे।
__चित माहै पांमै चिमत्कारो।। भीक्खू. ९. जाय मालव देश जमायौ रे, खंडी' सूं चरचा कर ताह्यौ रे।
बहु जन नैं लिया समझायो।। भीक्खू. १० त्यांरी धाक तूं पाखंड धूजै रे, वैणीरांम केसरी जिम गूंजै रे।
प्रगट हळुकर्मी प्रतिबूझै॥ भीक्खू. ११ उत्पत्तिया है बुद्धि उदारौ रे, समझाया घणां नर-नारौ रे।
हुऔ जिन शासण सिणगारौ।। भीक्खू. १२ घणा नै दीयौ संजम भारो रे, धर्म वृद्धि मूरत सुखकारौ रे।
ओतो भीख तणौ उपगारो।। भीखू. १३ कीयौ स्वाम भीक्खू पछै काळौरे, सैहर चासटूरे मैं सुविशालौ रे।
___समत अठारै संत न्हालौ।। भीक्खू. १४ भीक्खू ताऱ्या घणा नर नारौ रे, भवि तारक भीक्खू विचारो रे।
स्वामी जय-जश' करण श्रीकारो॥ भीक्खू. १५ सैंतालीसमी ढाळ सुहाया रे, भीक्खू सीस मोटा मुनिराया रे।
स्वाम संग परम सुख पाया।। भीक्खू. १. अन्य संप्रदाय के साधुओं से। ३. सं. १८७० ज्येष्ठ शुक्ला १० २. यह गांव-जयपुर के पास है। (वेणी चौढालियो ढा १४ गा. ५६।)
भिक्खु जश रसायण : ढा. ४७
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