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दूहा
भाळा .
१ सांम राम साधू सरल, संतां नै सुखदाय।
भद्र प्रकृति भारी घणी, नीत निपुण नरमाय॥ २ वर्स पेंसठै उवास' मैं, भीक्खू
पाछै पाली मैं परभव गया, निरमळ सांम निहाळ॥ ३ राम ऋषि रळियांमणा, इन्द्रगढ़ मैं
आय। चौला' मैं चलता रह्या, संतरै वर्से ताय॥ ४ देवगढ दिख्या ग्रही, संभूजी4'
सुविचार। . वार-वार संका पडै, छोड़ दियौ तिण वार॥ ५ तौ पिण गण बारै छतौ, करै साधां . नी सेव।
साध आहार आंण्यां पछै, आप ल्यावै नित मेव।। ६ पीत मुनि थी अति पवर, मुनि जिण गांव मझार। ___ आवै दर्शण करण कू, पिण संका थी हुऔ खुवार॥ ७ 'संघजी' थौ गुजरात रौ, चरण लियौ चित चाय।
सरियारी मैं नीकल्यौ, दुधर व्रत दिखाय॥ तदनंतर संजम लीयौ, 'वरल्या-वौहरा'२ जोय इकचालीसै आसरै, नाम 'नानजी261 सोय॥ स्वाम भीक्खू पाछै सही, एकोतरै
अवलोय। तेला मैं चलता रह्या, धर्मध्यान मैं जोय॥
ढाळ : ४७ (परम गुरु पूजजी मुझ प्यारा)
१ नानजी पछै चरण निहालौ रे, मुनि नेम मोटौ गुणमालौ रे।
वासी रोयट नों सुविशालौ रे।
हरष ऋषराय नै नित्य वंदो रे। १. उपवास (क)।
ढाळ ३ गाथा १७, १९ के अनुसार राम ऋषि २. हेम नवरसा' ढाळ ५ गाथा २ के अनुसार संथारा पूर्वक दिवंगत हए। तेले की तपस्या में तथा 'हेम गुण वर्णन' ३.बरल्या जाति के बोहरा-- ब्याज पर कर्ज
देने का काम करने वाले।
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भिक्खु जश रसायण