________________
१८ पांच-पांच ना पवर थोकड़ा, वर किया बोहळी वार।
उत्कृष्टो तप दिवस अठारै, एक टक उदक आगार॥ सुविनीत. १९ उभा रहिवा री तपसा अति, एक पौहर उन्मांन।
जे बहु वर्सी लग जांणजौ, खेतसीजी गुण खांन॥ सुविनीत. २० शीत उष्ण मुनि सह्यौज' अधिकौ, सकल संघ सुखकार।
स्वाम सतजुगि संभ- रे, आवै हरख अपार।। सुविनीत. २१ सतजुगी तणा प्रसंग थी रे, ते आगे चलसी विस्तार।
बे बहिन भाणेजे चारित्र लीधौ, छेहड़ा लग सुविचार॥ सुविनीत. २२ वर्स बावीस स्वाम नी सेवा, आसरै वर्स अठार।
भारीमाल नी छेह लग भगती, अधिक हुवौ उपगार॥ सुविनीत. २३ संलेखणा छेहडै करी सखरी, सखरौ ही संथार।
भीक्खू भारीमाल पाछै परभव मैं, असीये वर्स उदार॥ सुविनीत. २४ भीक्खू स्वाम प्रसाद थी रे, सतजुगी . संजम सार। ___पछै 'रामजी' संजम पचख्यौ, ओ भीखू तणौ उपगार॥ सुविनीत. २५ भीक्खू भांज्या भर्म घणां रा, भीक्खू भवदधि पाज।
भीक्खू दीपक भरत खेत्र नों, जगत उधारण जिहाज॥ सुविनीत. २६ भाग बली भीक्खू ऋष भारी, शिष मिलिया सुविनीत।,
भीक्खू याद आवै निश दिन मुझ, परम भीक्खू सूं पीत॥ सुविनीत. २७ पवर ढाळ कही छयांळीसमी, सतजुगीनों विस्तार। __ सेव करै स्वामी नी सखरी, 'जय-जश' करण उदार।। सुविनीत.
१. सह्यौ (क)।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ४६
१६१