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________________ प्रस्तुत प्रसंग में "चिट्ठी बांध लोकां नै चैतायो"से उसी परम्परा का संकेत किया गया है। आजकल हम जिसे T.A., D.A. कहते हैं राजस्थानी में उसे 'खरची' (२३/१०) शब्द से अभिहित किया गया है। इसी तरह 'कोथली' (४० दू.८) इस एक शब्द में एक पूरी परम्परा का संकेत है। विवाह-शादी के प्रसंग से जब लोग इकट्ठे होते थे उन्हें विदा करते समय बची हुई मिठाई की एक 'कोथली' थैली देने की परम्परा थी। वह पूरी परम्परा 'कोथली' इस एक शब्द में बंद है। इस तरह अनेकों संकेतों से यह पूरा ग्रंथ भरा पड़ा है। गीत-काव्य किसी भी रचना में भावावेग, कल्पना और लालित्य हो तो उसे कविता कहा जा सकता है। जयाचार्य के काव्य में ये तीनों विशेषताएं समाविष्ट हैं। मुख्य रूप से यह चरित काव्य गीत-विधा में लिखा गया है। जयाचार्य ने लोकगीतों की धुनों को अपनी रचना का आधार बनाया। वे खुद संगीत-रसिक थे। रात में जब कभी ढोली या महिलाएं गीत गातीं और उनकी धुन उन्हें अच्छी लगती तो उसे ग्रहण कर लेते और प्रातः उसी में गीत की रचना कर देते। उनके इस शौक में मोतीजी स्वामी की अच्छी भागीदारी रहती थी। राजस्थानी संगीत की अपनी एक पुष्ट परम्परा रही है। जयाचार्य ने भिक्खु जस रसायण में उस परम्परा की रक्षा की है। भिक्खु जस रसायण में कुल ६३ गीतिकाएं हैं। उनकी धुनों का परिशिष्ट भी साथ में दिया जा रहा है। ये सब राजस्थानी की अपनी विशेष धरोहर हैं। इनका संगीत-तत्त्व एक अलग विवेचना विषय है। यह जयाचार्य के संगीत-प्रेम का ही परिणाम है कि आज भी हजारों-हजार लोग तन्मय होकर उनकी रचनाओं का सस्वर गायन करते हैं। छंद-विचार ___ इस कृति में राजस्थानी के काव्य-प्राण दोहे-सोरठों का भी भरपूर उपयोग हुआ है। मनोहर छंद तथा लावणी का भी उपयोग किया गया है। __जयाचार्य का कवि-व्यक्तित्व बड़ा ही अनुपम था। उन्होंने न केवल विपुल साहित्य ही लिखा है अपितु छंद और अलंकार की दृष्टि से भी वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। वे न केवल आशु रचना ही करते थे, अपितु उनका भाव पक्ष और कला-पक्ष दोनों ही अत्यंत ऊर्जस्वल थे। वैसे पूरा भिक्षु जस रसायण ही . (x)
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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