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________________ ३), वायरै बंग (३४/२४), रस कूपिका (३४/३२) आदि कुछ ऐसे ही प्रयोग राजस्थानी भाषा में शब्दों को घड़ने की एक बहुत ही सहज प्रक्रिया है। बहुत सामान्य आदमी भी अपनी भावाभिव्यक्ति के लिए बोलचाल की भाषा में एक शब्द-प्रतिमा गढ़ लेते हैं। धीरे-धीरे उसे अन्य लोगों का भी अभिषेक प्राप्त हो जाता है और उस प्रतिमा की सार्वजनिक पूजा-प्रतिष्ठा हो जाती है। इससे भाषा तो समृद्ध होती ही है, पर थोड़े शब्दों में गहरा भाव भी सिमट जाता है। नई शब्द-संरचना शब्द संरचना में धातु और प्रत्यय दो मुख्य घटक होते हैं। राजस्थानी में भी इनका महत्त्व है। पर इस भाषा में शब्द-संरचना इतनी निर्बंध होती है कि बहुत बार उसे व्याकरण के नियमों में बांध पाना कठिन हो जाता है। जयाचार्य ने भी भिक्खु जस रसायण में ऐसे अनेक नये शब्दों को घडा है। भिक्षु दृष्टांतों के प्रसंग में एक जगह वे लिखते हैं -- "बंधी छोड लोकां में बाजै' (२९/९) यहां बंधी छोड़ का एक विशेष अर्थ है। बंधी छोड अर्थात् बंधे हुए को छुड़ाने वाला, मुक्त करने वाला। इस शब्द में बंध और छोड़ दो धातुओं का प्रयोग हुआ है। बंधी अर्थात् बन्दी, कैदी छोड़ अर्थात् छोड़ने वाला। इसे जब जिन्नत का रूप दिया जाता है तो इसका अर्थ छुड़ाने वाला हो जाता है। यह एक नई शब्द संरचना है। इसी तरह वे एक अन्य शब्द 'विषटालो' (२१/१३) का प्रयोग करते हैं। विषटालो अर्थात् विष को टालने वाला-वैर का विसर्जन करने वाला। इस प्रकार भिक्खु जस रसायण में ऐसी अनेक शब्द संज्ञाओं को प्रतिष्ठित किया गया है। परम्पराओं के संकेत जयाचार्य इस काव्य में उस समय की अनेक परम्पराओं एवं रीति-रिवाजों का भी संकेत करते हैं। आजकल सार्वजनिक सूचना के लिए 'नोटिस'Notice शब्द का प्रयोग किया जाता है जयाचार्य इसके स्थान पर -- 'चिट्ठी बांध लोकां नै चेतायो' (२१/१२) कहकर चिट्ठी बांध कर लोगों को चेताने की, खबरदार करने की बात कहते हैं। पुराने जमाने में जब भी कोई सार्वजनिक सूचना करनी होती थी तो उसे एक चिट्ठी अर्थात् कागज पर लिखकर शहर के दरवाजे पर लगा दिया जाता था। (xix)
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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