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बिगड़ी
१२ मांन घणौ घट माहि रे, प्रायश्चित नहीं ले ताहि रे, १३ वर्णन बहु विस्तार रे, रास'
बिहुं
अल्प इहां अधिकार रे, दाख्यौ १४ अणंदै " बिना विचार रे संथारौ चौविहार चित्त धार रे, गांम
तृखा अपार रे, सतरै
करै
संथार
रे,
तिण
'संतोषचंद " "
१६ 'पनजी"" छूटक पेख रे, चंद्रभाणजी देख
>
रे,
दोनूं भणी
केका
नै
१७ केइ पोतै हुआ न्यार रे, अपछंदा अवधार रे, त्यांनै
१५ ऊपनीं सैंणा
तिण सूं नैं साथै
माहि
म्हैं
१. ' अविनीत रास'।
२. उपनी (क) ।
छोड़ीया ॥
रच्यौ ।
थीं ॥
सही।
'वीठौरै' पूज गण॥ दिन सूं नीसर्यौ । सूं पहिला तोल नैं।
'सिवराम" नैं। फटावीया ॥
ढाळ : ४६
(दलाली लालन की )
चारित्र
भिक्खु जश रसायण: ढा. ४६
१ नीत निपुण 'नगजी 20' निरमल, 'कूंड्या ३ ना संथारौ कर कारज साऱ्या, कीधौ जन्म
सुविनीत शिष आय मिल्या,
धिन धिन हो भीक्खू थांरा भाग । सुखदाइ शिष आय मिल्या ॥ध्रुवपद ||
भीक्खू
प्रस्ताव
धौ
दूरा
बातड़ी।
कीया।
दोहिलौ ॥
२ सांम रांम बूंदी नां वासी, जाति श्रावगी
जांण।
जुगल जोड़लै दोनूं जाया, सोम्य भद्र सुविहांण ।। सुविनीत. पूज भीक्खू पै
तांम।
संजम
३ कर मनसोबौ आया केलवै, 'आज्ञा साम"' भणी आपीनै, ४ इह अवसर मैं श्रीजीदुवारे, - नांम खेतसी - निरमल नीकौ,
वसवांन।
कल्यांण ।
दीवायौ रांम ॥ सुविनीत.
भो पौ सुत
सार ।
साह थयौ संजम नैं - त्यार ।। सुविनीत..
४. मूल प्रति में साम के स्थान राम और राम के स्थान साम था, पर ' शासन विलास' आदि
३. वह गांव 'चित्तोड़' जिला (राजस्थान) में में पहले सामजी और फिर रामजी के
है।
दीक्षित होने का उल्लेख है, जो ठीक है । अत: यहां वैसा ही कर दिया गया है।
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