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१४ जोड़ी जुगती हो, तात-सुतन जिहाज, स्वाम भीक्खू रा प्रसाद थी।
पंडित मरणौ हो, ओ तो भवदधि पाज २, पाम्या है परम समाधि थी। १५ सखरी भाखी हो, चौमाळीसमी ढाळ २, स्वाम भीक्खू गुण सागरू।
वारु करवै हो जय जश सुविशाल २, अधिक गुणां रा आगरू।
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भिक्खु जश रसायण