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________________ ३ किण टोळा नां हो, तुम्हे संत कहिवाय २, इण विध लोक पूछ घणा। मांन मूंकी हो, बोलै बिहुं मुनिराय २, म्हे भीखनजी रा टोळा तणां॥ ४ प्रश्न चरचा हो त्यां नै कोइ पूछंत २, तौ संत दोनूं इम भाखता। भीक्खू भाखै हो तेहिज जांणजो तंत २, रुड़ी आसता भीक्खू नी राखता॥ ५ म्हांनै तो हो, पूरी खबर न काय २, भीखनजी नैं पूछी निरणौ करौ। सुध जांणौ हो, तेहिज सत्य वाय २, प्रगट कहै इम पाधरौ।। ६ त्यांरा तपनों हो, अधिकौ विस्तार २, कायर सुण कंपै घणा। अति पांमै हो, सूरा हरख अपार २, संत दोइ सुहामणा। ७ संजम पाळयौ हो, बहु वर्स श्रीकार २, विचरत 'बरलू' आवीया। धर्म-मूर्ति हो, ज्ञानी महा गुणधार २, हलुकर्मी हरषावीया।। ८ सुद्ध तपसा हो फतैचंदजी सैंतीस २, अधिक कियौ तप आकरौ। वारु करणी हो, ज्यांरी विसवावीस २, क्षांति गुणे मुनिवर खरौ॥ ९ पिता दीधौ हो तसुं पारणौ आंण २, ठंडी घाट बाजरी तणी। फत्ता ! करले हो पारणौ पहिछांण २, सरलपण कहै सुत भणी॥ १० निरममती' हो सुत संत निहाल २, प्रगट अपथर कीयौ पारणौ। कर गयौ हो तिण जोग सूं काळ २, सुमती जन्म सुधारणौ।। ११ इकतीसे हो, वर्से समत अठार २, फतैचंद फतै कर गया। निरमोही हो तात निमळ निहार २, थिर चित संजम अति थया। १२ मुनि आयौ हो खेरवा सैहर माहि २, सलेखणा मंडीया सही। चिहुं मासे हो, पारणा चित चाहि २, आसरै चउद किया वही॥ १३ थिर चित सूं हो मुनिवर थिरपाल २, बर्स बत्तीसे विचारीयौ। , कर तपसा हो मुनि कर गयौ काळ २, जीतब जन्म सुधारीयौ।। . १. ममत्त्व रहित। ढाल है। उसमें मुनि थिरपाल जी का सं. २. अपथ्य भोजन। १८३३ कार्तिक बदि ११ के दिन स्वर्गवास ३. मुनि थिरपालजी का स्वर्गवास शासन हुआ, यह मिलता है। यह ढाल खेरवा में विलास तथा ख्यात में सं. १८३२ कार्तिक बनाई गई है। उस वर्ष मुनिश्री का चतुर्मास कृष्णा ११ के दिन हुआ लिखा है। किन्तु खेरवा में था। उनके साथ मुनि सुखजी तथा १८३२ मृगसर बदि७के लिखत तथा १८३२ तिलोकजी थे। इन्ही सभी प्रमाणों के आधार जेठ सुदि ११ के लिखत में उनके हस्ताक्षर पर १८३३ ही सही लगता है। . हैं। और गुमानजी लूणावत (पीपाड़) द्वारा लिखित पोथे में श्रावक नेमीदास जी कृत भिक्खु जश रसायण : ढा. ४४ १५३
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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