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दूहा
वर
१ भाग बली भीक्खू तण, संत हुआ गण माहि।
वर्णन संखेपे पवर, आंखू धर ओछाहि। २ केयक पंडित मरण कर, कीधौ जन्म कल्याण।
कर्म-जोग केयक टळ्या, सुणजो चतुर सुजांण।। ३ बड़ा संत भीखू थकी, जनक-सुतन वर जोड़।
पिता स्वाम 'थिरपालजी', 'फतेचंद' . सुत मोड़। ४ वड़ा' टोळा में था बिहुँ, राख्या वड़ा सुरीत।
- सरल भद्र बिहुं श्रमण सुध, पूरी तसुं प्रतीत।। ५ तपसी तप करता बिहुँ, शीत उष्ण वरसाळ।
वड़ वैरागी विनय वर, रूड़ा मुनि ऋषपाल। ६ निरहंकारी निर्मळा, निर्लोभी
निकलंक। हळुआ कर्म उपधि करि, आर्जव उभय अवंक।। ७ शीतकाल अति शीत सहै, पछेवड़ी
परिहार। जन निशि देखी जांणीयौ, औ तपसी अणगार।। ८ कोटै आप पधारीया, महिपति
आवणहार। सांभळ ने ते संत बिहुं, ततक्षण कियौ विहार।। ९ निज आत्म तारण निपुण, वारु
वेपरवाह। तप मुद्रा तीखी घणी, चित इक शिव पद चाह।।
ढाळ : ४४
(राणी भाखै हे दासी सांभळ बात) १ संत दोनूं हो सोभै गुणवंत वनीत २, त्यां सूं प्रीत पूरण भीक्खू तणी।
भीक्खू सेती हो ज्यारै पूरण प्रीत २, गुणग्राही आत्म घणी।। २ पद आचार्य हो, भीक्खू बुद्धि नां भंडार २, जन बहु देखतां युक्ति सूं।
आप मूंकी हो पद नौं अहंकार २, कर जोड़ वंदणा करै भक्ति सूं।।
१.स्थानकवासी संप्रदाय में दोनों संत दीक्षा में २. वर्षा ऋतु (चतुर्मास काल) बड़े थे।
३. सरल।
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भिक्खु जश रसायण