SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२ सकइन्द्र सिरदारी जी, वज्रधारी सुर मैं सोभतो। जखादिक जीपै जां ज्यूं सुतर वज्र श्रीकारीजी, बळधारी बुध उतपात सूं। पूज पाडी पाखंड री हांण ॥ साध. विणासै १३ आइच्च' उगां आकासै जी, तिमर तेज सूं। करै उद्योत । मुगत रो। इधिको ज्यूं थे अज्ञान अंधार मिटायौ जी, बतायौ घण-घट १४ चंद सदा सुखकारी जी, परिवारी ग्रह नां सोमका मारग १६ सर्व वृक्षां मैं अत सोवै जी, १५० घाली कोठागार ज्यूं ज्ञांनादिक गुण भरीया जी, परवरीया पूज आधार १. शक्रेन्द्र। - प्रथम देवलोक का इन्द्र । २. आदित्य (सूर्य)। ३. अंधकार । ज्यूं च्यार तीरथ सुखदाया जी, मन भाया भवियण भीक्खू भला जसवंत ॥ १५ लोक घणां आधारी जी, अति भारी धांनांकर जोत ॥ साध. मझै । सोभंत । जीव रै। गण अथाय ॥ भूत मन मोवै दसै सुदरसण जंबू ज्यू संतां मैं सिरदारी जी मत भारी भीक्खू भरत उपना इचर्यकारी आंण ॥ १७ सीता नंदी सिरै जांणी जी, वखांणी वीर सिधंत पांचसै जोजन ज्यू तप-तेज अति तीखा जी, नहीं फीका, रह्याज सदा-काळ परंगट साध. भयो । कहाय । थया। साध. दीपतौ । जांण । ४. अनेक व्यक्तियों के हृदय में। ५. शान्तिकारी । ६. शोभित होते हुए। मैं । साध. मैं । प्रवाह । फाबता' । सुखदाय ॥ भिक्खु जश रसायण
SR No.006279
Book TitleBhikkhu Jash Rasayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages378
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy