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६ सूर-सिरोमणि साचो जी, नहीं काचौ लड़ता कटक' मैं।
सुविनीत अश्व-असवार। ज्यूं कर्म-कटक 'दळ' दीधौ' जी, जश लीधौ जाझोरे जगत मैं।
चढ सुतर अश्व श्रीकार। साध. ७ हाथी-हथण्यां परवारै जी, बळ धारै दिन-दिन 'ही वधै"
बधै साठ वरस सुध मान। ज्यूं थे तयाळी वरस लग जाझा जी, तप ताजा तेज तीखा रह्या।
प्राक्रम पिण परधांन॥ साध. वृषभ सींग खंध भारी जी, सिरदारी गायां-गण मझै।
थेट भार वहै भली भंत। ज्यूं थे गण-भार थेट निभाया जी, चलाया तीरथ चूंप सूं।
सहु साधां मैं सोभंत॥ साध. ९ सिंघ मृगादिक नौं राजा जी, तप ताजा डाढा तेज सूं।
जीव न जीपै जोय। ज्यूं आप केसर नी परै गूंज्या जी, धूज्या पाखंड धाक सूं।.
थांसू गंज' न सकै कोय।। साध. १० वासुदेव बळ जाण्यो जी, बखांण्यौ वीर सिधंत मैं।
___ संख चक्र ....- गदाधरणहार। ज्यूं थांरा ग्यांन दरसण चारित्र तीखा जी, नहीं फीका त्यां कर तेज सूं।
पूज पाखण्ड दीयौ निवार॥ साध. ११ आखा भरत नौं राजा जी, अति ताजा सेन्या सझ करी।
आंणै वै- नौ अंत। ज्यूं थे पाखंड सहु ओळखाया जी, हटाया बुध उतपात सूं।
तत्त्व बताया तंत॥ साध.
१.सेना। २. पछाड़ दिया। ३. बहुत। ४. दीपतौ (क)।
५. केशरी (सिंह)। ६. पाखंडी (क)। ७. जीत।
भिक्खु जश रसायण : ढा.४३