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कलश
१ दृष्टंत वारू अधिक चारू, स्वाम ना ज सुहांमणा।
भव उदधि तारण जग उधारण, ऋष भीक्खू रळीयामणा।। सुख वृद्धि संपति दमन दंपति, भरम भंजन अति भलौ। हद बुध हिमागर सुमति सागर, नमो भीक्खू गुणनिलौ।।
इति श्री भीक्खु जश रसायणे द्वितीयः खंडः।।
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भिक्खु जश रसायण