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४३ बांधी बाळ्यां किम तेजरा तोडै? चारित्र वैराग विण किम जोडै?
दीयौ तीन नावां नौं दृष्टंत, सुगुर-कुगुर ऊपर सोभंत। ४४ भेषधारी पिण तप करै ताय, मोटौ देवाळौ केम मिटाय।
वणी वणाइ ब्राह्मणी री वात, सांप्रत तिण रा साथी साख्यातः ।। ४५ सूत्र वांचै छेहडै हिंस्या थाप, छेहडै मोऱ्या मारू ज्यूं किलाप।
पत्थर खोस्यो तिण नैं कई होय, तिण रै हाथ आयो ते तूं जोय"। ४६ खेमासाह रा घर रौ नैहतौ होय, द्रव्य साध यांनें कहां सोय।
साध-असाध कुंण कहौ वाय? नागा ढकीया कितरा गांम माय? ४७ वले कुण देवाळ्यौ साहुकार, लखण वतावू करलौ विचार।
दीयौ कुणका पर पग तीन बार, खांमी छै पिण तिण सूं न प्यार ४८ दीयौ सेतखाना रो दृष्टंत, छिद्रपेही ऊपर दाखंत"। ___हेम पछेवड़ी कही अधिकाय, तिण नैं कठिण शीख समजाय ।। ४९ सोभाचंद नै कह्या सुद्ध न्याय, पाषांण नै सोनौ न कहाय।
नैहत मांगौ आप किण न्याय? सुता ब्याहव मैं मित्र बोलाया। ५० अविनीत त्रिया नौं पिछांण, अविनीत साधु ऊपर जांणा।
कह्या संखेप थी अल्प मात, पाछै वर्णवी सगळी वात।। ५१ चौपी विनीत-अविनीत री तास, आसरै तिण सूं हेतु पचास।
ते इक्ताळीसमी ढाळ मैं आख्या, तिण कारण इहां न भाख्या।। ५२ इत्यादिक कह्या हेतु अनेक, पूरा कह्या न जाय. विसेख।
हूआ भीक्खू ओजागर ऐसा, सांप्रत काळ मैं श्री जिन जैसा।। ५३ तसुं भजन चिंतामण सरखौ, प्रत्यक्ष पारस भीखू नै परखौ। ___म्हारै प्रबल भाग्य प्रमाण, इण काळ अवतरीया आंण।। ५४ नित्य समरण कर नर-नार, सुख-संपति कारण सार।
दुख-दोहग टाळणहार, इह भव पर भव सुखकार।। ५५ निमल ज्ञान नेत्रे करि निरख्यौ, पूज भिक्खू विवध कर परख्यौ।
वर पूरौ है तसुं विश्वास, अति वंछत पूरण आस॥ ५६ बयाळीसमी ढाळ विमास, सुद्ध दूजौ खंड सुप्रकाश।
स्वामी जय-जश करण सुहाया, प्रबल भाग बले भिक्खू पाया।।
भिक्खु जश रसायण : ढा. ४२
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