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सार॥
१ इत्यादिक दृष्टंत अति, सूत्र - न्याय वलि सार।
सखरा मेल्या स्वामजी, भीक्खू बुद्धि भंडार।। २ अनुकंपा रै ऊपरै, करणी पढम गुणठांण। इन्द्रीवादी
ऊपरै, बहु दृष्टंत वखांण॥ ३ पोत्याबंध ऊपर प्रत्यख, प्रज्यायवादि
पिछांण। काळवादी की चउपई, दृष्टंत त्यां बहु जांण। ४ व्रत - अव्रत री चउपई, अरु सरधा आचार।
जिण आज्ञा पर जुक्ति सूं, सखरा हेतू ५ टीकम डोसी कच्छ नौ, सूक्ष्म पूछा सोय।
जाब दीया अति जुक्ति सूं, ऋष भीख अवलोय॥ ६ भीक्खू नाम कह्यौ भलौ, सूत्रां मैं बहु ठांम।
भेदे कर्म भणी भलौ, गुण निप्पन्न तुझ नांम॥ ७ पंच महाव्रत अंक पंच, बार व्रत नां बार।
अव्रत बारै अंक धर, त्रिकरण जोग प्रकार।। ८ इण विध मांड वतावतां, हेतु न्याय अनेक।
आप दिखाया अधिक ही, वर्णवै केम विसेख॥ ९ दाख्या ते दृष्टंत नीं, संकलना
सुविसाल। कहूं छू संक्षेपे करी, 'सूचा - मात्र संभाळ।।
ढाळ : ४२
(डा पूंजादिक नी डोरी) १ पांच सौ मण चणा पिछांण, पंच सी- रा हेतू ते जांण।'
डोकरा नै चणां सेर दीवू, पीस पोय जल सूं तृप्त कीचूं। २ 'आखा पजूसणारे मैं न आलै', चोडै परंपरा थित चालै।
माता वेस्या नै तैं जळ पायौ, पाप छै पिण सरीखा न थायौ। १. सूची रूप।
३. पयूषण के दिनों में आखा/अक्षत/अनाज २. विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें-व्रतां को नहीं देते हैं। लेखो (जयगणिकृत)
भिक्खु जश रसायण : ढा. ४२
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